शहर से गांव डगर तक की कहानी

आनंद स्वरूप वर्मा

बात 1958 की है। मेरी उम्र 14-15 वर्ष थी। अपने अध्ययन क्रम में मुझे पता चला कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद जीरादेई के रहने वाले हैं जो बिहार में सीवान के पास है। मैंने टाइम टेबल उठा कर देखा और सोचा कि अपने गांव जाने के लिए वह भटनी जंक्शन से ही गुजरते होंगे क्योंकि भटनी के बाद चार-पांच स्टेशन पार करके सीवान पड़ता है। अगर वह भटनी में ट्रेन बदल लें तो चार-पांच स्टेशन पार करके दूसरी लाइन पर बरहज पहुंच सकते हैं। फिर क्या था- मैंने तुरत एक अंतर्देशीय पत्र खरीदा जो एक या डेढ़ आने में मिलता था और डा. राजेंद्र प्रसाद को एक पत्र लिखा कि अब जब वह कभी अपने गांव जाएं तो थोड़ा समय निकाल कर इधर आ जाएं और बरहज आश्रम भी देख लें। मैंने यह भी लिखा कि अगर यह संभव न हो तो अगर इन दिनों उनका मैरवा जाने का कार्यक्रम बने तो मैं खुद ही वहाँ आ कर उनसे मिल लूँ। दरअसल मैंने उनके मैरवा आगमन के बारे में कभी कोई समाचार पढ़ रखा था। अगले हफ्ते ही उनका जवाब आ गया-

 

प्रिय आनंद स्वरूप जी,

आपका 10.5.58 का पत्र प्राप्त हुआ है। समाचार मालूम हुआ।

आपने बरहज आश्रम देखने के लिए मुझे आमंत्रित किया है। मेरे लिए किसी एक काम को लेकर किसी स्थान पर जाना संभव नहीं होता। इसलिए जब कभी उस तरफ जाने का मेरा कार्यक्रम बने तभी आप लिख कर याद दिलावें।

इधर मेरे मैरवा जाने का कोई कार्यक्रम नहीं है।

जिन लोगों की ओर से आपने मुझे अभिवादन भेजा है उनको मेरी ओर से भी अभिवादन पहुंचाने का कष्ट करें।

आपका,

राजेन्द्र प्रसाद ’

उनका यह पत्र गाढ़े भूरे रंग के तकरीबन 6X4 साइज के लिफाफे में राष्ट्रपति भवन के लेटर हेड पर था। लिफाफा अच्छी तरह सीलबंद था जिस पर एक तरफ मेरा पता टाइप किया हुआ था और दूसरी तरफ अशोक की लाट छपी थी और लिखा था ‘राष्ट्रपति भवन’। बरहज के छोटे से डाकखाने में इस पत्र के पहुंचते ही हड़कंप मच गया और पोस्ट मास्टर खुद वह पत्र लेकर हमारे घर आए। कुछ और लोग भी जुट गए यह देखने के लिए कि कैसा पत्र है जो सीधे राष्ट्रपति भवन दिल्ली से आया है। मैंने पत्र खोला और बड़े गर्व के साथ सब को पढ़ कर सुनाया। लोगों ने बारी-बारी पत्र को हाथ में लेकर देखा और रोमांच का अनुभव किया। इस पत्र की काफी चर्चा रही। पत्र आज भी मेरे पास सुरक्षित है।

आज सोचता हूँ तो हैरानी होती है कि कैसे एक अनजान कस्बे से किसी लड़के द्वारा लिखे गए पत्र का देश के राष्ट्रपति ने अपने हस्ताक्षर से जवाब दिया !

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. मासिक तीसरी दुनिया के संपादक. )

 

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