शहर से गांव डगर तक की कहानी

बिहार डेस्क

बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है -एक चुनावी दौर में यह नारा दमभर चर्चित हुआ था. लेकिन यह उस कहानी का आरम्भ है जब लिखा या कहा जाता था, एक समय की बात है. क्या सच नीतीश अब अप्रासंगिक होते जा रहे हैं. बिहार में उनके वजूद पर संकट गहरा गया है. अगर पटना से दिल्ली तक के सियासी गलियारे को आप सूंघ सकें तो यह तुकबंदी अब इस तरह मुकम्मल हो सकती है. बीमार हैं, लाचार हैं नीतीशे कुमार हैं! राजनीतिक पंडित कहते हैं कि नीतीश की अगुवाई में भाजपा बिहार में विधानसभा चुनाव तो चाहती है लेकिन परिणाम के बाद उन्हें दूध में गिरी मक्खी की तरह निकाल कर फेंक देने को उतावली भी है. जदयू मौन है. नीतीश खामोश हैं. समझते हुए भी कुछ न कर पाने की एक छटपटाहट को समझने के लिए आज नीतीश कुमार से बेहतर कोई सियासी किरदार नहीं हो सकता है. हालाँकि उनके सुपुत्र निशांत कुमार ने मीडिया के सामने आकर बेचैनी को स्वर दे दिया. कहा – ‘एनडीए भी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करे। जेडीयू के तमाम नेता और कार्यकर्ता सभी मिलकर सीएम फेस घोषित करें। ताकि उनके नेतृत्व में विकास कार्य जारी रहे।’ पत्रकारों की एक मण्डली तो सुबह-शाम नीतीश के पलटने के सपने देखती है, यूँ कह भी नहीं सकते कि बिहारी चाणक्य कब किधर हो जाएँ, उन्हें भी शायद पता नहीं होता! लेकिन फिलहाल ऐसा होता दीखता नहीं है. भाजपा लगातार हावी होती जा रही है. ताज़ा मामला है, बिहार में मंत्रिमंडल विस्तार. भाजपा कोटे से सात मंत्री बनाये गए हैं, और भाजपा ने क्या क्या साध और नाथ लिया है, हम समझने की कोशिश करेंगे.

कौन कौन बने मंत्री

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने राजस्व मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया है. वहीं नीतीश कुमार की कैबिनेट में भाजपा कोटे से सात विधायकों को मंत्री बनाया गया है. इनमें संजय सरावगी (दरभंगा), सुनील कुमार (बिहारशरीफ), जीवेश कुमार (जाले), राजू कुमार सिंह (साहेबगंज), मोतीलाल प्रसाद (रीगा), विजय कुमार मंडल (सिकटी) और कृष्ण कुमार मंटू (अमनौर) के नाम शामिल हैं.

बता दें कि बिहार में अक्तूबर नवम्बर में विधानसभा चुनाव संभावित है. सारी क़वायद उसकी के मद्दे नज़र कि गयी है. अब हम इनकी जातीय, सामाजिक, आपराधिक और क्षेत्रीय पृष्ठभूमि को समझने की कोशिश करेंगे.

कृष्ण कुमार मंटू
सारण, छपरा, सिवान, गोपालगंज के इलाकों में लालू यादव का काफी प्रभाव है. कुर्मी जाति से आनेवाले कृष्ण कुमार मंटू उसी सारण के अमनौर से विधायक हैं. भाजपा इस तीर से दो निशाने साधने जा रही है. पहला राजद का असर कम करना और दूसरा नीतीश के वोट बैंक में भी सेंध लगाना. क्योंकि नीतीश कुमार स्वयं भी कुर्मी समुदाय सम्बन्ध रखते हैं तो सहज ही इस वर्ग में उनकी पैठ है.  अब भाजपा ने क्या अपनी जगह बनाने का प्रयत्न किया है या नीतीश कुमार के इस वोट बैंक को और मजबूत करने की रणनीति है. यह समय बताएगा. यह भाजपा नेता राजीव प्रताप रूडी के काफी निकट माने जाते हैं. उनके ऊपर दर्ज मुकदमों की बात करें तो 9 मुकदमें उनके ऊपर दर्ज है. 10वीं तक पढ़े मंटू के पास 7,25,94,470 करोड़ की संपत्ति है.

विजय कुमार मंडल

सीमांचल मुस्लिम बहुल इलाका है और यहां पर राजद  और ओवैसी की पार्टी AIMIM का बोलबाला रहा है. इसी इलाक़े में पड़ता है अररिया जिला, वहीं के सिकटी के विधायक हैं विजय कुमार मंडल. उधर, मंडल केवट जाति से आते हैं. मुकेश सहनी का असर इस समुदाय पर रहा है. राजद के साथ सहनी के जाने के कारण ये जाति एनडीए से कट गई थी. समझ सकते हैं, भाजपा की निगाह कहाँ कहाँ है. कौन कौन समीकरण साधे गए हैं. विजय भी 10वीं तक पढ़े हुए हैं. कुल जमा 1 करोड़ की संपत्ति के मालिक हैं. सिर्फ़ एक मुक़दमा चल रहा है.

राजू कुमार सिंह

मुजफ्फरपुर से सटे साहिबगंज के विधायक हैं राजू कुमार सिंह. राजपूत जाति के राजू सिंह को मंत्री बनाकर भाजपा ने और पास लाया है. हालाँकि यह वर्ग भाजपा को ही वोट करता आया है, लेकिन राजद की ओर भी कुछ झुकाव कहीं कहीं देखा गया है.  इनके राजनीतिक इतिहास की बात करें तो पहली बार राजू 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में साथ विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के टिकट पर विधायक बने थे. कुछ दिनों पहले ही भाजपा का दामन थामा है. काफी पढ़े लिखे तो हैं, लेकिन मुक़दमों की संख्या भी कम नहीं है, Ph-D डिग्री धारी राजू पर 10 आपराधिक मामले दर्ज हैं. उनके पास कुल 9 करोड़ की संपत्ति है.

संजय सारावगी
संघ के क़रीबी संजय सरावगी का वैश्य जाति से रिश्ता है. वैश्य भाजपा का परम्परागत वोटर है. राजद ने सेंधमारी की कोशिश छिट पुट की थी, उसे भेदने और संघ समर्थकों को संतुष्ट करने के लिए भाजपा ने यह चाल चली है. दरभंगा से भाजपा विधायक संजय सारावगी के पास कुल 5 करोड़ की संपत्ति है. 4 आपराधिक मामले दर्ज है, तो स्नातकोत्तर एमबीए की डिग्री भी रखते हैं.

 जीवेश मिश्रा
भूमिहार जाति से आने वाले जीवेश मिश्रा दरभंगा के जाले से विधायक से विधायक हैं. पिछले विधानसभा चुनाव से इस वर्ग का झुकाव राजद समेत दूसरे दलों की ओर थोडा बहुत जो हुआ था, उसे भाजपा अब मैनेज करने के प्रयास में है. संजय  सरावगी की  तरह यह दरभंगा ज़िले के हैं. दरभंगा वालों को यह भी सन्देश है कि दो मंत्री बने हैं. एलएलबी की डिग्री हासिल कर चुके जीवेश मिश्रा के पास 2 करोड़ की संपत्ति है. 2 मामले दर्ज हैं.

सुनील कुमार कुशवाहा
नालंदा के नीतीश कुमार कुर्मी-कोइरी की राजनीति से ही इस मक़ाम तक पहुंचे हैं.सुनील कुमार कुशवाहा बिहारशरीफ के उसे नालंदा से विधायक हैं. भाजपा यहाँ भी नीतीश के वोट बैंक में डेंट लगाने की फिराक़ में है. हालाँकि पहले से ही भाजपा के पास कुशवाहा समाज के उपेंद्र कुशवाहा और सम्राट चौधरी हैं ही. सुनील कुमार नालंदा के क्षेत्र में पार्टी जनाधार में इजाफा करेंगे. ग्रेजुएट सुनील के पास 2 करोड़ की संपत्ति है. 9 आपराधिक मामले दर्ज हैं.

मोती लाल प्रसाद
58 वर्षीय मोती लाल प्रसाद सीतामढ़ी के रीगा से विधायक हैं. हालाँकि जिस तेली समुदाय से आप आते हैं, ये वोटर भाजपा का ही है, लेकिन इधर, राजद ओबीसी और अति पिछड़े वर्ग को साधने की कोशिश में है , इसलिए भाजपा ने उसे और निकट लाने की जुगत भिड़ाई है.  इंटर पास मोती लाल के पास महज 50 लाख की संपत्ति है. 4 आपराधिक मामले दर्ज हैं.

 

 

 

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