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झारखण्ड के  विश्वविद्यालयों में शिक्षकों और कर्मचारियों की भारी कमी है.  जिसके  कारण छात्रों और संस्था को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. वहीँ उच्च शिक्षा व्यवस्था को भी संकट की ओर धकेल दिया है. बता दूँ कि रांची की विश्वविद्यालय के साथ  राज्य के अधिकतर विश्वविद्यालय नीड-बेस्ड और अनुबंधित शिक्षकों के सहारे चल रहे हैं. हालात ऐसे हैं कि 25 वर्षों से संचालित वोकेशनल विषयों में पढ़ाने वाले प्रोफेसरों से भी सरकारी प्रोफेसरों के तर्ज पर कार्य लिया जा रहा है. लेकिन उन्हें समान वेतन, सेवा शर्तें और अन्य सुविधाएं नहीं मिल रही हैं. 

शिक्षा मंत्री सुदिव्य कुमार सोनू ने विधानसभा में मुद्दा उठाने का आश्वासन दिया था

वहीँ वोकेशनल टीचर एसोसिएशन ने बार-बार अपनी मांगें सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन के सामने रखीं. लेकिन उन्हें लगातार नजरअंदाज किया गया. प्रदेश अध्यक्ष सह पूर्व सीनेट और सिंडिकेट सदस्य डॉ. अटल पांडे के नेतृत्व में संघ ने हाल ही में राज्यपाल, कुलपतियों और उच्च तकनीकी शिक्षा मंत्री सुदिव्य कुमार सोनू से मुलाकात कर झारखंड की बदहाल उच्च शिक्षा व्यवस्था, व्यावसायिक पाठ्यक्रमों, छात्र-छात्राओं, शिक्षकों और कर्मचारियों की समस्याओं को लेकर 20 सूत्री ज्ञापन सौंपा. मंत्री ने विधानसभा में मुद्दा उठाने का आश्वासन दिया था. लेकिन दिशोम गुरु शिबू सोरेन के निधन के बाद सत्र स्थगित हो गया. अब एक बार फिर संघ ने चेतावनी दी है कि अगर मांगें पूरी नहीं हुईं तो जोरदार आंदोलन किया जाएगा.

डॉ. अटल पांडे ने बताया कि राज्य में 2,500 से अधिक प्राध्यापकों के पद खाली हैं. 1990 के बाद से कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं हुई है, प्राध्यापकों को प्रमोशन नहीं मिलने के कारण 54 महाविद्यालयों में प्राचार्य के पद रिक्त हैं, जबकि विभागाध्यक्ष और अधिकारी प्रभार में काम कर रहे हैं. कई विश्वविद्यालयों में कुलपति, प्रति कुलपति, कुलसचिव, वित्त पदाधिकारी और परीक्षा नियंत्रक जैसे अहम पद वर्षों से खाली हैं. वोकेशनल पाठ्यक्रमों में कार्यरत शिक्षक और कर्मचारी भी रेगुलर शिक्षकों जैसी योग्यता रखते हैं. लेकिन उन्हें समान वेतन, पेंशन, एचआरए, डीए, ग्रेच्युटी, सेवा अवधि और अन्य लाभ नहीं मिलता है.

रांची विश्वविद्यालय अध्यक्ष प्रो. अवधेश ठाकुर ने कहा कि 6 वर्षों से छात्रसंघ चुनाव नहीं हुए हैं. सीनेट-सिंडीकेट में सरकार के प्रतिनिधि नियुक्त नहीं होने से विश्वविद्यालय प्रशासन में मनमानी बढ़ गई है. उन्होंने यह भी बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में नेटवर्क की कमी और केवल ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया के कारण नामांकन में गिरावट आ रही है. रांची विश्वविद्यालय के 36 कर्मचारियों के वेतन निर्धारण का मामला भी लंबे समय से लंबित है. वोकेशनल टीचर एसोसिएशन का कहना है कि अगर इन मांगों का जल्द समाधान नहीं हुआ तो राज्य के उच्च शिक्षा संस्थानों की स्थिति और बिगड़ जाएगी. जिससे सीधा असर छात्रों के भविष्य पर पड़ेगा.

वोकेशनल टीचर एसोसिएशन की प्रमुख मांगें

  • वोकेशनल/सेल्फ फाइनेंस विषयों में पद सृजन कर सभी विभागों का सरकारी अधिग्रहण.
  • सरकारी कर्मचारियों जैसी सेवा शर्तें और सुविधाएं, सेवानिवृत्ति आयु, पेंशन, टीए, डीए, एचआरए, ग्रेच्युटी आदि.
  • सभी महाविद्यालयों एवं पीजी विभागों में प्राध्यापकों की शीघ्र नियुक्ति.
  • 1990 से रिक्त पड़े कर्मचारियों के सभी पदों पर नियुक्ति.
  • प्राध्यापकों को अविलंब प्रमोशन.
  • सभी विश्वविद्यालयों से निजी परीक्षा एजेंसी (NCCF) को हटाना.
  • रांची विश्वविद्यालय की जमीन की वापसी और पुस्तकालय निर्माण.
  • सीनेट-सिंडीकेट का शीघ्र मनोनयन.
  • छात्रसंघ चुनाव कराना.
  • पूरे राज्य में प्राचार्यों की नियुक्ति.
  • पुस्तकालयाध्यक्ष और सहायकों की नियुक्ति.
  • विश्वविद्यालयों में कुलसचिव, परीक्षा नियंत्रक, वित्त पदाधिकारी जैसे पद भरना.
  • अतिथि शिक्षकों के साथ न्याय.
  • डॉ. विभा पांडे को उप निदेशक पद से हटाना.
  • विश्वविद्यालय सत्र को नियमित करना.
  • रांची विश्वविद्यालय के 36 कर्मचारियों के वेतन निर्धारण का निपटारा.
  • इंटर कर्मियों का विश्वविद्यालय या जैक में सामंजन.
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