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मध्यप्रदेश के मोहन यादव सरकार के कैबिनेट मंत्री विजय शाह की भारतीय सेना की महिला अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी पर की गई आपत्तिजनक टिप्पणी मामले में हाईकोर्ट के निर्देश पर बुधवार रात प्राथमिकी दर्ज की गई, जिसे हाईकोर्ट ने गंभीरता से न लेने पर फटकार लगाई है. हाईकोर्ट ने FIR को पक्षपातपूर्ण बताते हुए मध्य प्रदेश सरकार को चेताया है. बता दें कि इस अपमानजनक टिप्पणी के चलते इंदौर ग्रामीण के मानपुर थाने में मंत्री के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी, लेकिन जिस तरीके से यह FIR दर्ज की गई, उस पर अब मध्यप्रदेश हाईकोर्ट को सख्त एतराज है.
दर्ज एफआईआर पर क्या कहा हाईकोर्ट ने
हाईकोर्ट ने कहा है कि FIR इस तरह ड्राफ्ट की गई है मानो किसी को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से की गई हो और इससे स्पष्ट होता है कि सरकार इस मामले को गंभीरता से लेने में विफल रही है. हाईकोर्ट की एकल पीठ ने इस बात पर खास जोर दिया कि दर्ज किए गए प्राथमिकी में न तो घटना का तथ्यात्मक वर्णन है और न ही यह बताया गया है कि किस कृत्य के कारण किन धाराओं में अपराध दर्ज किया गया है. कोर्ट ने सख्ती से कहा – “अगर सिर्फ आदेश ही लिखना था, तो पूरी FIR में ऊपर कुछ और लिखने की जरूरत ही क्या थी? पूरी FIR सिर्फ आदेश की फोटोकॉपी बना दी जाती. ”
हाईकोर्ट ने जताई गंभीर चिंता
हाईकोर्ट ने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि FIR इस तरह से तैयार की गई है मानो आरोपी को कानूनी राहत दिलाने के लिए ही ऐसा किया गया हो. कोर्ट का कहना था कि यदि इस FIR को सीआरपीसी की धारा 482 के अंतर्गत चुनौती दी जाती है, तो इसमें अपराध के तत्वों का अभाव होने के कारण इसे रद्द करना बहुत आसान होगा. कोर्ट ने यह भी संकेत दिए कि जानबूझकर अपराध के विवरण को नजरअंदाज किया गया, ताकि आरोपी को बाद में कानूनी छूट मिल सके. यह एक गंभीर आरोप है जो सरकार की निष्पक्षता और जांच की नीयत पर प्रश्नचिह्न लगाता है.
FIR दर्ज करने के समय पर HC ने उठाए सवाल
FIR दर्ज किए जाने के समय को लेकर भी कोर्ट ने सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए. राज्य सरकार की ओर से दावा किया गया कि FIR शाम 7:55 बजे दर्ज की गई थी, लेकिन रिकॉर्ड और अन्य दस्तावेजों के अनुसार इसे फाइनल करने का समय रात 11 बजे दर्शाया गया है. कोर्ट ने कहा कि जब वीडियो फुटेज जैसी ठोस सामग्री पहले से उपलब्ध है, तो इतनी देरी क्यों की गई? और जब दर्ज किया गया, तो फिर भी अपराध का विश्लेषण क्यों नहीं जोड़ा गया? कोर्ट का यह सवाल इस ओर इशारा करता है कि पूरी प्रक्रिया सिर्फ औपचारिकता निभाने के लिए की गई थी.
जस्टिस श्रीधरन ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह कोई हत्या का जटिल मामला नहीं है, जिसमें गवाहों की तलाश करनी पड़े या परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की पड़ताल करनी हो. मंत्री का बयान एक वीडियो के रूप में सार्वजनिक है और उसमें उन्होंने क्या कहा, वह भी स्पष्ट है. ऐसे में FIR में उस वीडियो की सामग्री, वक्तव्य और आपत्तिजनक हिस्सों को क्यों नहीं जोड़ा गया? कोर्ट ने कहा कि जब FIR की बुनियाद ही कमजोर रखी जाएगी, तो भविष्य में यह पूरा मामला आरोपी के पक्ष में झुक जाएगा और न्याय की प्रक्रिया कमजोर हो जाएगी.
हाईकोर्ट की निगरानी में होगी पूरी जांच
मामले की गंभीरता को देखते हुए हाईकोर्ट ने यह निर्देश दिया है कि इस पूरे प्रकरण की जांच अब न्यायालय की निगरानी में होगी यद्यपि कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वह जांच में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नहीं करेगा, लेकिन प्रत्येक चरण की निगरानी की जाएगी, ताकि निष्पक्ष और तथ्यपरक जांच सुनिश्चित हो सके. कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि मामले की अगली सुनवाई कल यानी 16 मई को की जाएगी, जिससे न्याय प्रक्रिया में कोई अनावश्यक विलंब न हो.