जीटी रोड लाइव डेस्क
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना का शताब्दी वर्ष आ पहुंचा है। राजनीतिक पंडितों का सोचना है कि संघ कि राजनीतिक इकाई भाजपा आज सत्ता में है। स्वाभाविक है कि उसे अपने एजेंडा को लागू करना है। उस रास्ते में अल्पसंख्यक वर्ग उसे रोड़ा लगता है। यही कारण है कि इधर के दशक में अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न बढ़ा है। नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार हो या विभिन्न सूबों में भाजपा नीत सरकार- इन पर आरोप लगते रहे हैं। मुख्य धारा की मीडिया में खामोशी है। वहां संघ और भाजपा के एजेंडे का ही अधिक प्रचार-प्रसार देखने को मिलता है। दैनिक भास्कार समूह बीच-बीच में पत्रकारीय फ़र्ज़ निभाने की कोशिश करता है। इसी सन्दर्भ में आज 9 अप्रैल का उसका सम्पादकीय पढ़े जाने लायक़ है। जो स्पष्ट ढंग से कहता है कि गड़े मुर्दे उखाड़कर दो वर्गों में विभाजन करना सरकार का प्रमुख अस्त्र बन गया है। राजनीतिक लाभ के लिए धार्मिक ध्रुवीकरण के किसी भी हद तक जाने को भाजपा तैयार दिखती है।
पढ़िए दैनिक भास्कर का हुबहू संपादकीय
कुछ वर्ष पूर्व एक समारोह में बोलते हुए भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि गवर्नेस के एक बड़े भाग को किसी भी किस्म की आइडियोलॉजी से कुछ लेना-देना नहीं होता। यानी वाम विचारधारा हो या दक्षिणपंथी सोच, दोनों का आदर्श एक ही होता है- समाज का हित। लेकिन नए दौर की राजनीति ने उन्हें गलत साबित किया है। धार्मिक ध्रुवीकरण का राजनीतिक लाभलेना और इतिहास में हुई घटनाओं को लगातार उठाकर विभेद बनाए रखना गवर्नेस का प्रमुख भाग बन गया है। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट को अफसोस के साथ कहना पड़ा कि राज्य की एजेंसियां नागरिकों के अधिकारों को जानबूझकर नजरअंदाज करती रही हैं। दरअसल सुप्रीम कोर्ट इस बात से नाराज थी कि एक सांसद ने कुछ उर्दू कविता पोस्ट की, जिसे लेकर उनके खिलाफ गुजरात पुलिस ने एफआईआर दर्ज की और इसे हाईकोर्ट ने भी सही ठहराया। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि वह कविता हिंसा के खिलाफ संदेश है न कि हिंसा भड़काने वाली है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार कॉमेडी भी अगर किसी को बुरी लगती है तो उसका प्रतिकार हिंसा से महीं होना चाहिए। लेकिन क्या सुप्रीम कोर्ट की हिदायत को राजनीतिक वर्ग-खासकर सत्ताधारी वर्ग- संज्ञान में लेकर अपने तरीके में सुधार करेगा? अकसर सुप्रीम कोर्ट के फैसले भी संसद में कानून बनाकर पलट दिए जाते हैं, लेकिन सत्ताधारी दलों के नेताओं को आडवाणी की नसीहत को नहीं भूलना चाहिए। (भास्कर से साभार)