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झारखंड की राजनीति और इसमें दिलचस्पी रखने वालों के लिए आज 16 अगस्त का दिन एक ऐसा संयोग लेकर आया है, जो बेहद अनोखा है. आज पूर्व पीएम व अलग झारखंड राज्य का गठन करने का श्रेय पाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी की सातवीं पुण्यतिथि है तो वहीं अलग झारखंड का निर्माण करने को लेकर लंबा संघर्ष करने वाले आदिवासी जननायक दिशोम गुरु शिबू सोरेन का आज श्राद्धकर्म है. जिनका बीते 4 अगस्त को निधन हो गया था.

इसी कड़ी में एक और दुखद घटना तब जुड़ गई जब बीते दिन यानी 15 अगस्त की देर शाम जब पूरा झारखंड 79वां स्वतंत्रता दिवस मनाने की खुशियों में डूबा हुआ था तो अचानक दिल्ली में पिछले 13 दिनों से इलाजरत झारखंड के शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन के निधन की दुखद खबर आई और आज अब दिल्ली से उनके शव को झारखंड लाकर अंतिम संस्कार करने की तैयारी की जा रही है.

घाटशिला से तीन बार विधायक बने थे रामदास सोरेन

झारखंड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ नेताओं में से एक रामदास सोरेन तीसरी बार घाटशिला विधानसभा सीट से 2024 के विधानसभा चुनाव में विधायक चुने गए थे और हेमंत सोरेन के नेतृत्व में लगातार दूसरी बार बनी सरकार में वह दूसरी बार मंत्री बनते हुए उन्होंने शिक्षा मंत्री का पद संभाला था.

यह दूसरा ऐसा मौका है, जब शिक्षा मंत्री का दायित्व संभालने वाले अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाये और अचानक उनका निधन हो गया. इससे पहले हेमंत सोरेन सरकार के पिछले कार्यकाल में शिक्षा मंत्री रहे जगरनाथ महतो का भी असामयिक निधन हो गया था और अब रामदास सोरेन अपना कार्यकाल पूरा किए बिना ही 62 साल की उम्र में इस दुनिया को छोड़ चल बसे.

1 जनवरी 1963 को पूर्वी सिंहभूम जिले के घोराबांधा गांव में एक किसान परिवार में जन्मे रामदास सोरेन ने अपनी राजनीतिक यात्रा घोराबंदा पंचायत के ग्राम प्रधान के तौर पर शुरू की और जुलाई 2024 में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में बनी सरकार में वह पहली बार मंत्री बने. इससे पहले 2009 और 2019 में भी वह विधायक चुने गए.

इसके बाद 2024 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने पूर्व सीएम चंपाई सोरेन के बेटे व भाजपा उम्मीदवार बाबूलाल सोरेन को हराकर जब वह तीसरी बार झारखंड विधानसभा के लिए चुने गए, तो उन्हें एक बार फिर से मंत्री पद नवाजते हुए सीएम हेमंत सोरेन ने उन्हें शिक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी. 2 अगस्त को घोराबांधा स्थित अपने आवास के बाथरुम में वह ब्रेन स्ट्रोक के चलते गिर गए. 13 दिनों बाद इलाज के दौरान 15 अगस्त को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में उनका निधन हो गया.

पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की सातवीं पुण्यतिथि

तीन बार देश का नेतृत्व संभालने वाले पहले गैर कांग्रेसी पूर्व प्रधानमंत्री व भारत रत्न से सम्मानित अटल बिहारी वाजपेयी जी की आज सातवीं पुण्यतिथि है. 2018 में आज ही के दिन 94 वर्ष की आयु में लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया था. अटल बिहारी वाजपेयी को झारखंड का निर्माता भी कहा जाता है, जब उनके नेतृत्व में ही केंद्र सरकार ने साल 2000 में झारखंड समेत तीन अलग राज्यों के गठन का फैसला लिया था. इसके तहत बिहार से अलग होकर झारखंड बना तो वहीं मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ व उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड का निर्माण हुआ था.

अटल बिहारी वाजपेयी पहले ऐसे गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री भी रहे, जिन्होंने पांच साल का अपना कार्यकाल पूरा किया. इससे पहले 1996 में हुए आम चुनाव के बाद वह 13 दिनों के लिए और फिर 1998 में हुए लोकसभा चुनाव में वह 13 महीनों तक प्रधानमंत्री रहे. दूसरे कार्यकाल में ही साल 1998 में 10 व 13 मई को भारत ने परमाणु बमों का परीक्षण कर अमेरिका सहित पूरी दुनिया को चौंकाया था.

1999 में केवल एक वोट से संसद में विश्वास मत खोने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी बार प्रधानमंत्री के रुप में 5 साल का अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाये हालांकि इसके बाद 1999 में ही देश में हुए मध्यावधि आम चुनावों में भाजपा ने बड़ी जीत कर अपने सहयोगी दलों के साथ फिर से सरकार बनाई और अटल बिहारी वाजपेयी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने.

इस बार उन्होंने पांच साल का अपना कार्यकाल पूरा किया और आजादी के 55 सालों में ऐसा करने वाले वह देश के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने. इससे पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री रहे मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, वी पी सिंह, चंद्रशेखर, एच डी देवेगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल आदि किसी ने भी यह सफलता हासिल नहीं की थी.  

पहले 2004 और फिर 2009 में दूसरी बार लगातार लोकसभा चुनाव हारने के बाद साल 2009 में स्वास्थ्य संबंधी समस्यों के चलते अटल बिहारी वाजपेयी ने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया और नई दिल्ली स्थित सरकारी निवास में वह रहने लगे. साल 2014 में लोकसभा चुनाव जीतने और प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने साल 2015 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया. 16 अगस्त 2018 को बीमारी के चलते 94 वर्ष की आयु में दिल्ली में उनका निधन हो गया. 

अलग झारखंड निर्माण के महानायक शिबू सोरेन    

साल 2000 में 15 नवंबर को जब देश के 28वें राज्य के रुप में झारखंड का गठन हुआ तो अलग राजनीतिक परिस्थितियों के कारण लंबे समय तक जमीन पर अलग झारखंड राज्य बनाने के लिए संघर्ष करने वाले आदिवासी नेता शिबू सोरेन को इसका श्रेय नहीं मिला और न ही वह इस आदिवासी प्रदेश झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री बने.

81 सदस्यों वाले झारखंड विधानसभा के गठन के पश्चात सबसे अधिक सीटें भाजपा के पास होने के कारण झारखंड का नेतृत्व भाजपा के हाथों में रहा और बाबूलाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बने. हालांकि साल 2003 में डोमिसाइल आंदोलन के चलते उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा और उनकी ही सरकार में मंत्री रहे अर्जुन मुंडा झारखंड के दूसरे मुख्यमंत्री बने.

साल 2005 में अलग झारखंड में पहली बार हुए विधानसभा चुनाव के बाद सबसे बड़ा दल या गठबंधन के नेता नहीं होने के बावजूद शिबू सोरेन पहली बार 2 मार्च को मुख्यमंत्री बने. हालांकि विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर पाने के कारण महज 9 दिनों बाद ही 11 मार्च को उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. बाद में साल 2008 के सितंबर महीने में विधानसभा के दूसरे कार्यकाल में ही शिबू सोरेन को एक बार फिर से मुख्यमंत्री पद संभालने का अवसर मिला हालांकि मुख्यमंत्री बने रहने के लिए 2009 के जनवरी महीने में हुए तमाड़ विधानसभा उपचुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा और एक बार फिर से उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. यह दूसरा ऐसा मौका था जब शिबू सोरेन छह महीने भी मुख्यमंत्री नहीं रह पाए.

साल 2009 के नवंबर महीने में हुए विधानसभा चुनाव के बाद जब किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला तो भाजपा, झामुमो और आजसू पार्टी ने मिलकर सरकार बनाई और शिबू सोरेन तीसरी बार मुख्यमंत्री बने. इस बार भी वह बिना विधायक रहे उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.

तीनों दलों के गठबंधन को विधानसभा में पूर्ण बहुमत हासिल होने के बावजूद भी जब शिबू सोरेन ने साल 2010 में लोकसभा सदस्य के रूप में संसद में मनमोहन सिंह सरकार के पक्ष में मतदान किया तो उसके बाद बीजेपी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिसके कारण एक बार फिर से मुख्यमंत्री पद से शिबू सोरेन को इस्तीफा देना पड़ा.

शिबू सोरेन के नाम यह रिकार्ड भी दर्ज है कि वह तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने लेकिन इस दौरान एक बार फिर भी न तो विधायक बन पाए और न ही अपना कोई कार्यकाल पूरा कर सके.

यह राजनीतिक विडंबना ही है कि 25 सालों से भी अधिक समय तक अलग राज्य का सपना देखने व इसके लिए संघर्ष व आंदोलन करने वाले को अलग-अलग राजनीतिक परिस्थितियों के चलते राज्य का नेतृत्व करने का पूरा मौका नहीं मिला. शिबू सोरेन आठ बार लोकसभा व दो बार राज्यसभा के लिए भी चुने गए.

राज्यसभा  सदस्य के रूप में उनके साथ एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि दोनों ही बार वह अपना 6 सालों का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. पहली बार साल 2002 में जब वह राज्यसभा के लिए चुने गए तो 2004 के लोकसभा चुनाव में दुमका से निर्वाचित होने के कारण उन्हें समय पूर्व इस्तीफा देना पड़ा तो वहीं 2020 में दूसरी बार फिर से जब वह राज्यसभा सदस्य बने तो जून 2026 में कार्यकाल पूरा होने के दस महीने पहले ही 4 अगस्त 2025 को उनका निधन हो गया.              

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