शहर से गांव डगर तक की कहानी

राकेश कायस्थ 
प्राय: टॉपटेलस और पूर्णत: शेमलेस स्वयंभू बाबा ने जिंदगी में पहली बार पूरे कपड़े तब पहने थे, जब उसे इस बात का डर लगा था कि रामलीला मैदान का ड्रामा भंग करती पुलिस कहीं लट्ठ ना बजा दे। तब बाबा ने पूर्ण वस्त्र धारण किये थे। इस बात क्रेडिट देना होगा कि संपूर्ण नारी वेश धरते करते वक्त दुपट्टा ओढ़ना नहीं भूला था। जल्दबाजी में बिंदी नहीं मिली होगी, इसका बेनिफिट ऑफ डाउट दिया जाना चाहिए। महागठ अन्ना ने उसी मौसम में दिल्ली में गन्ना बोया था। कथित अनशन के दौरान ग्लूकोज मिला पानी पी रहा था और टनाटन बोल रहा था। दुनिया हाथ जोड़े कह रही थी कि दूसरा गाँधी आ गया है, अब लोकपाल भी आ जाएगा। अन्ना से कंपीटिशन करते वक्त स्वयंभू बाबा भी जोश-जोश में अनशन कर बैठा और 24 घंटे में हालत चूहेदानी में फंसे मरियल चूहे जैसे हो गई। तस्दीक आप इस तस्वीर से कर सकते हैं। ढूंढेगे तो वीडियो भी आसानी से मिल जाएगा। हम सब लोगों ने अपने चैनलों पर बार-बार चलाया था, और सरकार को जी-भरकर कोसा था। मुझे अच्छी तरह याद है, इस आदमी को अस्पताल में भर्ती कराकर ग्लूकोज चढ़ाना पड़ा था। किसी योगमाया या आर्युवेद से इलाज नहीं हुआ था। 
आयुर्वेदिक दवाइयों में जानवरों की हड्डियां मिलाने का इल्ज़ाम
कथित आयुर्वेदिक दवाइयों में जानवरों की हड्डियां मिलाने काइल्ज़ाम लगा था, तब ये आदमी मुलायम सिंह यादव से अभयदान लेने पहुंचा था। समाजवादी होते ही हैं, बड़े दिल वाले और भोले-भाले। नेताजी ने फौरन बयान जारी कर दिया था कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के खिलाफ बाबा ने जितनी सार्थक लड़ाई लड़ी है, उतनी तो हम भी नहीं लड़ पाये हैं।
इस आदमी ने खुद को ब्राहणवाद पीड़ित साबित करने के लिए अपने उपर एक फिल्म बनवाई थी, जिसमें ये दिखाया गया था कि पंडे-पुजारी किस तरह बालक रामदेव पर जुल्म ढा रहे हैं। मतलब एक पैर समाजवादी कैंप में दूसरा यादव टोली और बाकी हाथ-पैर-सिर सबकुछ बीजेपी में। कांग्रेस के बड़बोले नेता दिग्विजय सिंह ने इसे ठीक पहचाना था। उन्होंने कहा था “ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको ठगा नहीं। यह आदमी शत-प्रतिशत ठग है, इसके अलावा कुछ और नहीं है।“ उस दौरान कांग्रेस का मौसम खराब था और इसलिए पब्लिक ओपिनियन उल्टे दिग्विजय सिंह के खिलाफ हो गई थी। हर प्रोडक्ट में धोखा, अपनी जान बचाने के लिए एलोपैथी की शरण में जाना और कोविड के दौरान लोगो को भरमाने और अपना कथित चमत्कारी प्रोडक्ट कोरोनिल बेचने के लिए ये दावा करना कि एलोपैथी की वजह से कोरोना के दौरान हज़ारों लोग मर गये। कारनामे बहुत से हैं। जहां पिटने-पिटाने का डर वहां इस आदमी को कान पकड़कर माफी मांगने से भी कोई गुरेज नहीं है।
सांप्रादायिकता की बहती गंगा में हाथ धोने ये आदमी देर से उतरा
सांप्रादायिकता की बहती गंगा में हाथ धोने ये आदमी देर से उतरा है। मुंतशिर से पुन: सुकुल अवतार लेना वाला चोर गीतकार, हरेक दरबार में बख्शीश की उम्मीद में जाने, छंद सुनाने और बारी-बारी से भगाये जानेवाला अविश्वसनीय विश्वास, नरेंद्र मोदी पर दिल्ली की विधानसभा में ऑन रिकॉर्ड एक लड़की के यौन शोषण का आरोप लगाने वाला और अब मंत्री बना मिश्रा, आपको बीसियों नाम ऐसे मिल जाएंगे जो रातो-रात पाला बदलकर `प्रोग्रेसिव’ से `दंगाई बनाओ इनाम पाओ’ परियोजना के लाभार्थी बने हैं। रूह अफ़ज़ा सवा सौ साल पुराना प्रोडक्ट है और समाज के लिए किया गया हमदर्द का योगदान असंदिग्ध है। इसलिए ये कहना सही नहीं होगा कि सलवारी बाबा की जहरीली बयानबाजी से हुई निगेटिव पब्लिसिटी उसे किसी तरह का लाभ पहुंचाएगी। सलवारी बाबा का नया पैतरा सिर्फ एक बात पर मुहर लगाती है। नफरत फैलाओ प्रोजेक्ट को सरकार उसी तरह चला रही है, जिस तरह कभी पोलियो ड्रॉप पिलाने का अभियान चलाया गया था। वक्त-वक्त की बात है। बाबा आश्वस्त है कि जब हिंदू-मुसलमान करके जब एक निकम्मी सरकार तीसरी बार सत्ता में आ सकती है, तो फिर कोई धंधेबाज अपने शर्बत की हजार-दो हजार बोतलें ज्यादा क्यों नहीं बेच सकता। लेकिन हलाल सार्टिफिकेट लेकर अपना माल दुबई तक बेचने वाले इस आदमी का दांव उल्टा भी पड़ सकता है। परम नीचता देखकर हो सकता है बहुत से बंधे-बंधाये ग्राहक भी बिदक जायें। फायदा हो रहा है या नुकसान, इसका अंदाजा अगले तीन-चार दिन में आनेवाले बयानों से मिल जाएगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। रामभक्त रंगबाज़ उनकी चर्चित पुस्तक है।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। G.T. Road Live  का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।

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