शहर से गांव डगर तक की कहानी

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झारखंड के कलाकार और फ़िल्मकार आजकल आक्रोशित हैं. आंदोलन के मूड में हैं. इसके पीछे सबब क्या है. 10 मई को रांची प्रेस क्लब, करमटोली में एकजुट होकर सभी आन्दोलन प्रदर्शन करने जा रहे हैं. उनका कहना है कि हम सभी कलाकार, फ़िल्मकार, एल्बमवाले, नाटककार, पेंटर, राइटर, सिंगर, डांसर, सब के सब सड़कों पर उतरेंगे, सरकार को अपनी ताकत दिखाएँगे। हम चुप नहीं बैठेंगे, हम डरेंगे नहीं, और जब तक हमारी मांगें नहीं मानी जातीं, तब तक यह आंदोलन अब थमने वाला नहीं है। हम, झारखंड के फिल्मकार- कलाकार, आज अपने हक़ के लिए खड़े हो रहे हैं। सालों तक संघर्ष कर हमारे पुरखों ने अलग झारखंड राज्य बनाई, ताकि हमारी अलग पहचान बन सके। लेकिन उनके सपनों के झारखंड की पहचान नहीं बन पाई। हम कलाकारों को सिर्फ़ नाचने की वस्तु बना दिया गया है। हमारी मेहनत, हमारी कला और हमारी संस्कृति को सरकार द्वारा नज़रअंदाज़ किया जा रहा है।’
क्या कहते हैं आक्रोशित कलाकार
आक्रोशित कलाकारों का कहना है कि झारखंड की फिल्म नीति में स्थानीय कलाकारों, तकनीशियनों और फिल्म निर्माताओं के लिए कोई ठोस प्रावधान नहीं है। नाटककारों के पास नाटक दिखाने का निशुल्क मंच नहीं है। चित्रकारों के पास निशुल्क आर्ट गैलरी नहीं है। लेखकों के लिए साहित्य अकादमी नहीं है। झारखंड के कला संस्कृति का सारा बजट सिर्फ़ खेल विभाग और पर्यटन में लगाया जा रहा है। यह हमारे सपनों के साथ खिलवाड़ है, और अब हम इसे सहने को तैयार नहीं हैं! अब वक्त आ गया है आवाज़ बुलंद करने का! उनका कहना है कि पहले झारखंड सरकार कला-संस्कृति के प्रमोशन के लिए शनि परब, सुबह सवेरे  संगीत संध्या और्जैसे कार्यक्रम करवाती थी.  इससे कलाकारों को प्रतिभा दिखाने का अवसर मिलता था. इन्हें पारिश्रमिक भी मिलता था. ये सालों से बंद हैं. गुस्से की दूसरी महत्वपूर्ण वजह नागपुरी फिल्म नायका को बताया जा रहा है. दरअसल इसे प्रदर्शन के लिए सिनेमा हाल ही नहीं मिला. महज़ एक सिनेमाघर में एक सप्ताह तक एक शो दिखाई गयी फिल्म. हंगामा हुआ तो एक सप्ताह और बढ़ा दिया गया है. 
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