शहर से गांव डगर तक की कहानी

   मदर्स डे स्पेशल 

अपने कामों में मस्त  बिना किसी थकान के  ज़िन्दगी जिए जाती  हैं .अल्हड़ नदी सी कल कल करती  हुई  वह अपना सुख और दुःख सब अपने बच्चे में ही खोजती हैं. खुद नाजुक सी होने के बाद  भी सुबह उठ कर एक सिपाही की भांति मुस्तैद रहती है. अपने आसूं छुपाना अपनी थकावट छुपाना ये सब उनकी दिचर्या में शामिल होती है   बच्चे  के बीमार होने पर रात रात भर जागकर उनकी देखभाल करना और सुबह उसी ताजगी के साथ  सरे घर के काम करने के बाद अपनी ड्यूटी पर जाना और शाम को घर आते ही रसोई के कामों  में लग जाना .बच्चो से कहना कहना खा लिया था न टाइम पर . कभी बच्चो को डाट  या  मार लगा दिया तो खुद ही बैठकर  रोना की हमने ऐसा क्यों किया  यह कोई और नहीं एक माँ है  ….माँ…..  ज़िन्दगी कितनी भी बोझिल क्यों न हो जाये लेकिन कभी महसूस नहीं होने देती है वह  उस बात का भी अफ़सोस करने लगती है जो कभी उसने किया ही नहीं .अपनी पूरी कोशिश करने के बाद  भी संतुष्टि  नहीं होती है माँ.  माँ को हमेशा लगता  है कुछ कमी रह गई है. माँ को बीमार पड़ने के लिए भी छुट्टी नहीं मिलती है.उसकी हर सफलता में जी तोड़ मेहनत .है माँ ताकतवर ,मजबूत,और ज़ज्बाती  होती हैं. वह एक नारियल की तरह होती है.ऊपर से कड़क और अन्दर से नरम .अपनी जिम्मेदारी के बोझ तले इतनी दब जाती हैं की कब उम्रदराज़ हो जाती हैं चेरे पर झुरियां पड़ जाती हैं. माँ को पता भी नहीं चलता है.

किसी ने सही  लिखा है… की

माँ न होती तो कहाँ शाम सवेरा  होता.माँ न होती तो ये संसार अँधेरा होता .माँ ने जो सर पर हाथ न फेरा होता मुश्किलों ने मुझे हर राह में घेरा होता.माँ सी अनमोल कोई चीज कहाँ होती है. एक ख़ुदा होता होता है. और एक माँ होती है.;

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