जीटी रोड लाइव डेस्क
गुजरात के अहमदाबाद में कांग्रेस नेताओं का जुटान हुआ। दो दिनों तक मैराथन चिंतन-मनन हुआ। संघ की विचारधारा और भाजपा की राजनीति के विरुद्ध पार्टी ने कमर कस ली है। इसके लिए पार्टी ने अपनी रणनीति में भी बदलाव किया है। हालांकि इसके संकेत राहुल गांधी इधर के सालों में लगातार दे रहे थे। लेकिन इस चिंतन शिविर में मुखर होकर उन्होंने स्थिति स्पष्ट की। माना कि कांग्रेस अब तक ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम वोट के लिए प्रयासरत रहती थी। जबकि समय के साथ वे आधार खिसकते गए। अब कांग्रेस पूरी तरह बहुजन सियासत करना चाहती है। और इसमें भी सबसे अधिक ध्यान पिछड़े समुदाय पर देने की योजना है। वहीं संगठन को मजबूत करने पर फोकस किया गया है। कांग्रेस के इस चर्चित अधिवेशन को लेकर तरह-तरह की प्रतिक्रिया सामने आ रही हैं। यहाँ पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार पुष्प रंजन का राइट अप।
कांग्रेस का लक्ष्य पहले गुजरात जीतेंगे, फिर देश
पहले गुजरात जीतेंगे, फिर देश. लेकिन, गुजरात से पहले नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव है। और कैडर कहाँ से लाएंगे? साबरमती के तट पर दो दिवसीय चिंतन का निष्कर्ष यही है कि कांग्रेस को न्याय पथ पर चलना है। कांग्रेस को भविष्य की पार्टी होना चाहिए, सिर्फ अतीत की नहीं। कांग्रेस सकारात्मक विमर्श करेगी, केवल नकारात्मक नहीं। सात पेज के प्रस्ताव में कांग्रेस ने सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक बिंदुओं के साथ-साथ राष्ट्रवाद, विदेश नीति, सर्वधर्म, किसान, मजदूर, युवा और महिलाओं से जुड़े तमाम बिंदुओं पर बात की। दो हज़ार डेलीगेट्स के जमावड़े से लगता है, कांग्रेस एक्शन में आ चुकी है। एक फ़िल्मी गाना फिर से याद कर लीजिये- “क़समें -वादे-प्यार वफ़ा सब, बाते हैं बातों का क्या !” कड़वा सवाल है, ज़मीन पर कैडर कहाँ से लाएगी कांग्रेस? इस यक्ष प्रश्न पर व्यापक चर्चा होनी चाहिए थी। पार्टी के बड़े नेता धूल-मिट्टी गर्मी खा नहीं पाएंगे। उदाहरण, पी. चिदंबरम जैसे नाज़ुक वीवीआईपी नेता हैं, जो गर्मी से अधिवेशन में बेहोश हो गए थे। शशि थरूर से लेकर सचिन तक अभिजात्य चेहरे, आम कार्यकर्ताओं से कटे हुए। दूसरा, आपकी पार्टी के अंदर मौजूद बीजेपी के स्लीपर सेल।
नूतन गुजरात, नूतन कांग्रेस का संकल्प
आप सहयोगी दलों के साथ क्या दिल्ली मॉडल पर लड़ेंगे? “दिल्ली मॉडल” कांग्रेस की दुर्दशा और नॉन सीरियस तरीके से चुनाव लड़ने की इबारत लिख गया है। गुजरात की ज़मीन पर आम आदमी पार्टी ने भी बुआई की है। राजनीतिक फसल उसे भी काटनी है। “नूतन गुजरात, नूतन कांग्रेस का संकल्प लिया।” सुनने में सुखदायी, और सुन्दर लगता है. पार्टी ने कहा कि वह तीन दशक के बाद सत्ता में वापसी के लिए पूरी ताकत झोंक देगी। हम तो “बेस्ट ऑफ़ लक” ही कहेंगे। राहुल बाबा, मत भूलना, गुजरात से पहले नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव है। गुजरात, भाजपा का अभेद क़िला है। घर में घुसकर मारने के वास्ते कितनी तैयारी है? यह सब कुछ स्थानीय और जिला समितियों में आपके कैडर की संख्या, और कमिटमेंट पर निर्भर करता है। यह राह नहीं है आसान। गुजरात से बहुत पहले बिहार में है विधानसभा चुनाव। क्या बिहार चुनाव को लेकर कांग्रेस के रणनीतिकार सीरियस हैं? सदाक़त आश्रम का नज़ारा देखकर ऐसा तो नहीं लगा !
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। देश-विदेश के कई मीडिया हाउस में संपादक रहे ।)
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। G.T. Road Live का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।