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पीएम, सीएम व मंत्रियों के गंभीर आरोपों में गिरफ्तार होने व 30 दिनों तक हिरासत में रहने के बाद उन्हें पद से हटाने से संबंधित केंद्र सरकार के नए 130वें संविधान संशोधन से संबंधित तीन विधेयकों पर विचार के लिए गठित संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी में शामिल होने के मुद्दे पर विपक्षी इंडिया गठबंधन में दरार पड़ती नजर आ रही है. ऐसा तब हो रहा है जब पिछले हफ्ते ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के लोकसभा में बिल को रखे जाने के दौरान विपक्षी सांसदों ने एक साथ इस बिल का विरोध किया था. 

मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस जहां इस समिति में शामिल होती नजर आ रही है, वहीं टीएमसी और समाजवादी पार्टी ने इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया है. टीएमसी के राज्यसभा सांसद डेरेक ओ’ब्रायन ने जेपीसी को “बेमतलब” करार देते हुए ‘एक्स’ पर लिखे एक पोस्ट में कहा कि संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी सरकार का हथकंडा मात्र भर है. जेपीसी बेमतलब है और यह एक तमाशा है.

वहीं समाजवादी पार्टी की ओर से भी इस समिति में किसी सदस्य को नामित किए जाने की संभावना नहीं है. उद्धव ठाकरे की शिवसेना भी अब तक यह तय नहीं कर पाई है कि जेपीसी में शामिल हुआ जाए या नहीं. हालांकि वामपंथी दल जेपीसी में शामिल होने के पक्ष में नजर आ रहे हैं.

असली उद्देश्य विपक्षी सरकारों को गिरानाः AAP

जेपीसी से आम आदमी पार्टी ने भी दूरी बना ली है. ‘आप’ के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कहा कि उनकी पार्टी ने जेपीसी में किसी भी सदस्य को नामित नहीं करने का फैसला किया है. ‘एक्स’ पर लिखे एक पोस्ट में उन्होंने कहा, “भ्रष्टाचारियों के सरदार भ्रष्टाचार के खिलाफ विधेयक कैसे ला सकते हैं? नेताओं को फर्जी मामले में फंसाना और जेल में डालना, सरकारों को गिराना इस विधेयक का उदेश्य है, इसीलिए अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी ने जेपीसी में शामिल नहीं होने का फैसला लिया है.” आप ने आरोप लगाया कि इन विधेयकों का असली उद्देश्य विपक्षी सरकारों को गिराना है.

कई दलों के जेपीसी से दूरी बनाने के फैसले से इतर कांग्रेस अब डीएमके, एनसीपी, आरजेडी और जेएमएम जैसे अन्य क्षेत्रीय सहयोगी दलों से भी बात करके उन्हें भी संयुक्त संसदीय समिति में शामिल करने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस नेताओं का यह भी मानना है कि अगर बीजेडी, वाईएसआरसीपी और बीआरएस जैसे तथाकथित तटस्थ दल इस समिति में शामिल होते हैं, तो वे समिति में विपक्ष की अनुपस्थिति का फायदा उठाकर विपक्ष के रूप में अपने विचार रखेंगे.

बता दें कि केंद्र शासित प्रदेश सरकार (संशोधन) विधेयक 2025, संविधान (एक सौ तीसवां संशोधन) विधेयक 2025 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2025 बुधवार को लोकसभा में पेश किए गए थे। उसके बाद इन्हें संसद की एक संयुक्त समिति को भेज दिया गया है.

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