शहर से गांव डगर तक की कहानी

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देश के जाने माने पत्रकार श्रवण गर्ग ने अपने एक पोस्ट में लिखा, “देश के नागरिकों की रुचि इस हक़ीक़त को जानने में होगी कि सत्तारूढ़ दल की नज़रों में कश्मीर और कश्मीरियों की हैसियत क्या है ? क्या वही है जो दुनिया के सामने प्रदर्शित की जाती है या कुछ अलग है ? उस कश्मीर की जिस पर हक़ को लेकर पाकिस्तान अगर ज़ुबान भी खोलता है तो ‘देशभक्तों’ का खून खौलने लगता है ! भगवा तलवारें म्यानों से बाहर आने लगतीं हैं !
सवाल यह है कि हुक्मरानों और उनके समर्थकों की नज़रों में क्या कश्मीर धरती पर बसा कोई स्वर्ग है ? एक सैरगाह है ? या केवल ज़मीन का टुकड़ा है ?और इसी के साथ यह कि उनकी नज़रों में वहाँ बसने वाले कश्मीरियों की औक़ात क्या है ? क्या उन्हें भी विशाल भारत देश की आत्मा का ही हिस्सा माना जाता है या फिर उनकी मौजूदगी में किसी अदृश्य पाकिस्तान की हरदम तलाश चलती रहती है ? यानी हमें कश्मीर की तो ज़रूरत है कश्मीरियों की नहीं ?
कश्मीर और कश्मीरियों के दर्द को समझने के लिए हमें 29 जुलाई की रात लोकसभा में दिए गए सिर्फ़ छह मिनटों के एक भाषण की आत्मा में प्रवेश करना पड़ेगा ! ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर हुई धुआँधार बहस का यह दूसरा दिन था। देर रात हो चुकी थी, सदन लगभग ख़ाली-सा था फिर भी कुछ सांसद थे जिन्हें बोलना था और सुनना था.
यह भाषण श्रीनगर से चुने गए नेशनल कांफ्रेंस के बेहतरीन सांसद आगा रूहुल्ला मेहदी ने दिया था. मेहदी अपनी ग़ैर-सांप्रदायिक राजनीति के लिए पूरी कश्मीर घाटी में एक ख़ास पहचान रखते हैं. मेहदी ने सिर्फ़ छह मिनटों में अपनी बात को इतने ताकतवर लहजे में रख दिया कि प्रधानमंत्री पौने दो घंटों में भी नहीं रख पाए होंगे !
मेहदी के कहे को अगर सार में बताना हो तो उन्होंने कहा :’ पहलगाम में जब खूनी दहशतगर्दी हुई तो उसके ख़िलाफ़ पूरी घाटी सड़कों पर निकल आई, दुकानें और रोज़गार बंद हो गए. घाटी की जनता को पता है कि खून का बहना क्या होता है, क़त्ल क्या होता है ! कश्मीर के लोगों ने अपनी ज़िम्मेदारी पूरी निभाई। सांसद मेहदी ने आगे कहा : अफ़सोस इस बात का है कि जब भी इस तरह की घटनाएँ होतीं हैं पाकिस्तान के साथ जंग छिड़ने के पहले कश्मीर के अवाम के साथ जंग छेड़ दी जाती है. बाक़ियों के साथ बाद में छेड़ी जाती है. पुलवामा (14 फ़रवरी 2019) के लोग जब आज भी श्रीनगर के लिये ट्रैवल करते हैं, हर पाँच किलोमीटर पर उनकी गाड़ियों को रोका जाता है.
पहलगाम के वाक़ये के बाद भी ऐसा ही हुआ ! बाक़ी के साथ जंग बाद में छेड़ी गई कश्मीर के अवाम के साथ पहले छेड़ दी गई. दो  हज़ार से ज़्यादा लोगों को किसी भी क़ानून का लिहाज़ किए बग़ैर घरों से उठाकर जेलों में बंद कर दिया गया! देश के अलग-अलग हिस्सों में सौ से ज़्यादा कश्मीरियों को पीटा गया, सड़कों से हटाया गया और उनकी दुकानें बंद करवाई गई। सिर्फ़ शक की बुनियाद पर कश्मीर में बारह घरों में यह मानकर ब्लास्ट कर दिया गया कि वे मुलज़िमों के हो सकते हैं !
सत्ता पक्ष के सांसद अपना धैर्य खोने लगे थे, उनके सब्र का बांध टूटने लगा था ! दो दिन से चल रही बहस के दौरान किसी ने भी ऐसे सवाल नहीं उठाए थे जो सांसद मेहदी पूछ रहे थे ! मेहदी ने जब सत्ता पक्ष की ओर रुख़ करते हुए सवाल किया कि : क्या कश्मीर आपके के लिए सिर्फ़ एक ज़मीन है ? क्या मुल्क में कोई क़ानून है ? सत्ता पक्ष की बेंचों की तरफ़ से किसी की आवाज़ सुनाई दी :’ तो इसमें ग़लत क्या है ?’
जवाब सुनकर सांसद मेहदी बिफर पड़े ! अब तक सदन में शोर बढ़ने लगा था और काफ़ी गर्माहट पैदा हो चुकी थी।अपनी सीट पर वापस बैठने से पहले मेहदी ने पलटवार करते हुए आख़िरी बात कह दी :’ तो यही है कश्मीर आपके लिए ! ये है आपकी हक़ीक़त ? यही है आपकी जम्हूरियत? यक़ीन किया जाना चाहिए कि सांसद मेहदी के द्वारा कही गई एक-एक बात 29 जुलाई की कार्रवाई के रिकॉर्ड में दर्ज हुई होगी !
मेहदी जब पुलवामा का ज़िक्र कर रहे थे,मुझे रह-रहकर याद आ रहा था कि उस हादसे के दौरान किस तरह देश के अलग-अलग हिस्सों में कश्मीर से आकर अध्ययन करने वाले बच्चों और छोटे-बड़े व्यापारियों के साथ मारपीट की गई थी।उन्हें आतंकवादी बताया गया था।उन्हें अपने घरों को वापस लौटने की धमकियाँ दी गईं थीं। सीआरपीएफ़ की हेल्पलाइन की मदद से उन्हें वापस भेजा गया था।
पुलवामा के कोई एक सप्ताह बाद (23 फ़रवरी 2019 को) राजस्थान के टोंक में हुई चुनावी सभा में पीएम ने कहा था :’हमारी लड़ाई आतंकवाद के ख़िलाफ़ है। कश्मीर और कश्मीरियों के ख़िलाफ़ नहीं है।देश के किसी भी कोने में कश्मीरी बच्चों के साथ बुरा व्यवहार नहीं होना चाहिए ! वे अपने ही हैं।’ पीएम के कहे के बावजूद कश्मीरियों के ख़िलाफ़ तब हिंसा की घटनाएँ बंद नहीं हुईं थी !
पहलगाम हादसे के बाद कश्मीरियों के ख़िलाफ़ घाटी-स्थित उनके घरों और देश के विभिन्न हिस्सों में हुई हिंसा की घटनाओं के ख़िलाफ़ पीएम ने न तो संसद के भीतर कुछ कहा और न ही बाहर किसी सभा में ! सांसद आगा मेहदी जब लोकसभा में बोल रहे थे मोदी उपस्थित नहीं थे। उन्हें बाद में तो पता चला ही होगा कि क्या कहा गया। क्या ऐसा मान लिया जाए कि सत्ता पक्ष की बेंचों ओर से किसी के द्वारा की गई टिप्पणी(‘तो ग़लत क्या है ?) के प्रति सरकार की भी मौन सहमति है ?
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