शहर से गांव डगर तक की कहानी

अनिल अमिताभ पन्ना

जीटी रोड लाइव ख़बरी

नेमरा… यह अब केवल एक गांव नहीं रहा. यह अब झारखंड की आत्मा का प्रतीक है, दिशोम गुरु शिबू सोरेन जी की कर्मभूमि और आदिवासी अस्मिता का तीर्थ बन चुका है. यहां की मिट्टी में संघर्ष की सुगंध है, और हवा में एक ऐसा भाव बहता है जो हर आगंतुक को भीतर तक छू जाता है.

विश्व आदिवासी दिवस (9 अगस्त) की गूंज अब भी गूंज रही थी, और अगले ही दिन—10 अगस्त को, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जी का जन्मदिन. इन दोनों तिथियों के बीच जो सेतु बना, वह भावना और परंपरा का अनोखा संगम था. मैं, एक सामाजिक कार्यकर्ता और एक युवा आदिवासी के रूप में, उस दिन मुख्यमंत्री जी से मिलने गया. नेमरा की भूमि पर दिशोम गुरु की अनुपस्थिति एक भारी सन्नाटा पैदा कर रही थी. ऐसे में मुख्यमंत्री जी से मिलना, मेरे लिए केवल एक शिष्टाचार नहीं, बल्कि एक बेटे से मिलना था जिसने कुछ दिन पूर्व अपने पिता को खोया था—और एक बेटे से मिलना, जो पूरे राज्य का दर्द अपने भीतर समेटे खड़ा था.

जब मैं हेमंत भैया के पास पहुंचा, तो मेरे पास शब्द नहीं थे. सच कहूं तो गला रूंध गया था. लेकिन उन्होंने जैसे ही मेरा कंधे में हाथ रखा और फिर मेरी बाँह पकड़ ली… वह स्पर्श मेरे लिए दुनिया की सबसे भावुक अनुभूति बन गया. उस क्षण में न कोई औपचारिकता थी, न कोई राजनीति—केवल एक गहरा मानवीय रिश्ता था. उन्होंने मुझे देखा, और बिना कुछ कहे जैसे कह दिया—“मैं समझता हूं… मैं जानता हूं कि हम क्या खो चुके हैं.”

मैं बस उन्हें देखता रह गया. मन में कुछ भी कह पाने की शक्ति नहीं थी, लेकिन उनकी आंखों में जो दर्द, जो अपनापन और जो संबल था—वह मेरे भीतर एक नई ऊर्जा भर गया. मुख्यमंत्री जी का यह भाव—जो न नेता का था, न पद का—बल्कि एक पुत्र का, जिसने अपनी जड़ों को कभी नहीं छोड़ा—ने मेरे दिल को छू लिया.

आज नेमरा गांव एक साधारण गांव नहीं रहा. यह दिशोम गुरु के कारण एक पवित्र स्थल बन गया है. यहां हर दिन हज़ारों लोग पहुंच रहे हैं—अपने श्रद्धा-सुमन लेकर, अपने आंसुओं और भावनाओं को लेकर. यहां की मिट्टी अब आदिवासी चेतना की साक्षी बन चुकी है. यह वही गांव है जिसे पहले कोई जानता नहीं था, लेकिन आज यह पूरे भारत के सामाजिक और राजनीतिक नक्शे पर चमक रहा है.

16 अगस्त को दिशोम गुरु का श्राद्ध भोज आयोजित है. अनुमान है कि पाँच लाख से अधिक लोग उसमें शामिल होंगे. कई राज्यों के मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक कई विशिष्ट अतिथि शामिल होंगे. यह केवल एक धार्मिक या पारंपरिक आयोजन नहीं है—यह आदिवासी समाज की एकता, संस्कृति और संघर्ष की याद का जीवंत प्रमाण है.

और इसी भावना के सम्मान में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जी पिछले 10 दिनों से यहीं हैं. सापरिवार यहीं पारंपरिक रीति रिवाज के साथ उपस्थित हैं. यह उनका कर्तव्य मात्र नहीं है, यह उनकी आत्मा की पुकार है. एक पुत्र की तरह उन्होंने नेग और परंपरा का आदर किया है और यह वह क्षण है जो उन्हें एक जननेता से ऊपर, एक ‘जनमानस का बेटा’ बना देता है. रोज यहां हजारों लोग आ रहे हैं. यह सुबह से देर रात तक जारी है. मैं और मेरे जैसे हजारों युवा, उस दिन नेमरा में होंगे. हम सब दिशोम गुरु को श्रद्धा से याद करेंगे, लेकिन साथ ही मुख्यमंत्री जी की आत्मीयता, उनकी सरलता और उनके अंदर के उस पुत्र को भी सलाम करेंगे जो हर झारखंडियों के दुख को अपना दुख मानता है.

हेमंत सोरेन जी की यही संवेदनशीलता, यही आत्मीयता, और यही सादगी उन्हें बड़ा बनाती है—किसी कुर्सी या ताज से नहीं, बल्कि लोगों के दिलों में स्थान पाकर.

नेमरा की हवा आज भी गवाह है कि दिशोम गुरु हमारे बीच है,वे हमारे विचारों में है,हमारी चेतना में हैं.

दिशोम गुरु को शत शत नमन.
नेमरा की मिट्टी को प्रणाम.

(लेखक सोशल ऐक्टिविस्ट एवं युवा आदिवासी नेता हैं.)
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं. G.T. Road Live का सहमत होना जरूरी नहीं. हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं.
Share.

Comments are closed.

Exit mobile version