डॉ. फ़सीह अहमद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईद के अवसर पर चुनिन्दा मुसलमानों के पास ईद की सौग़ात भेजी। जबकि उत्तर प्रदेश में उनकी ही पार्टी भाजपा के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने ईद की नमाज़ अदा करने में ही कई जगह बंदिशें लगायीं। हमें यह हरगिज़ नहीं भूलना चाहिए कि भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है, आज यहां की सबसे बड़ी अल्पसंख्यक आबादी — मुसलमान — डर, असुरक्षा और सामाजिक-पॉलिटिकल भेदभाव के दौर से गुज़र रही है। नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद मुसलमानों की ज़िंदगी एक नए और ख़तरनाक मोड़ पर आ गई है। आइये हम मोदी राज में मुसलमानों को मिली उन ख़ास आठ सौग़ात की चर्चा करते हैं, उन तमाम क़दमों और नीतियों की समीक्षा करते हैं, जिसका नाता मुसलमानों से है। जिसे प्रबुद्ध तबक़ा मुसलमानों को कमज़ोर करने के लिए अपनाया गया सुनियोजित प्लान कहता है।
1. गुजरात दंगे 2002 – एक सुनियोजित नरसंहार की शुरुआत
आम धारणा है कि नरेंद्र मोदी की राजनीति की शुरुआत एक ख़ूनी अध्याय से होती है — गुजरात 2002। साबरमती एक्सप्रेस में आगज़नी की घटना के बाद सरकार के संरक्षण में मुसलमानों के ख़िलाफ़ दंगे भड़काए गए, जिनमें हज़ारों मुसलमान मारे गए। महिलाओं के साथ दुष्कर्म और बच्चों तक की हत्या आज भी इंसाफ़ से वंचित है।
2. तीन तलाक़ क़ानून – धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप
मुसलमानों के पारिवारिक और धार्मिक मामलों में दखल देते हुए तीन तलाक़ पर क़ानून बनाया गया। इस मुद्दे को मीडिया में उछालकर पूरे समुदाय को बदनाम करने की कोशिश की गई। पहले प्रचारित किया गया कि इससे महिलाओं को लाभ होगा, लेकिन आज तक कोई डाटा सामने नहीं आया कि इससे कितनी मुस्लिम महिलाओं को फ़ायदा हुआ।
3. अनुच्छेद 370 की समाप्ति – कश्मीरी मुसलमानों की आवाज़ को कुचलना
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि जम्मू-कश्मीर से विशेष दर्जा हटाना एक राजनीतिक हमला था, जिसका असली निशाना कश्मीरी मुसलमान थे। इंटरनेट बंद कर दिया गया, मीडिया और बुनियादी मानवाधिकारों पर रोक लगा दी गई, हज़ारों युवाओं को जेल में डाल दिया गया और पूरी घाटी को एक खुली जेल बना दिया गया। तर्क ये दिए गए थे कि इससे आतंकवाद थमेगा, लेकिन ज़मीनी सच्चाई ये है कि अब भी घाटी आतंक से झुलस रही है। तीन हिस्से में बाँट दिए गए सूबे के लोग परेशान हैं । लद्दाख में लगातार आन्दोलन जारी है।
4. CAA और NRC – नागरिकता के नाम पर डर का माहौल
तमाम प्रतिकार और विरोध प्रदर्शनों के बावजूद CAA देश में लागू हो चुका है। ये ऐसा क़ानून है, जिसके तेहत मुसलमानों को छोड़कर सभी को नागरिकता देने का प्रावधान है, जो आवेदन करें। इसके बन जाने के बाद बमुश्किल हज़ारों लोगों ने नागरिकता ली, लेकिन दूसरी ओर लाखों भारतीय युवाओं ने नागरिकता छोड़ विदेश में बस जाना उचित समझा। CAA नागरिकता संशोधन कानून को NRC के साथ समझना होगा, जिसका उद्देश्य स्पष्ट है — मुसलमानों को बेदख़ल और असुरक्षित करना। जहां हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध को नागरिकता का अधिकार दिया गया, वहीं मुसलमानों को अपने ही देश में नागरिकता साबित करने के लिए मजबूर किया गया।
5. बुलडोज़र राज – बिना न्याय के सज़ा
सुप्रीम कोर्ट ने कई बार किसी भी घर-इमारत को जल्दीबाज़ी में अकारण बुल्डोज़ करने से मना किया है, लेकिन भाजपा शासित कई सूबों में इसकी धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं। एकाध अपवाद को छोड़ दें तो इसके निशाने पर मुसलमान हैं। मुसलमानों के घरों, दुकानों और मदरसों को बिना किसी नोटिस या अदालती आदेश के गिरा देना आम हो गया है। ये कार्रवाइयां न्याय की आड़ में बदले की खुली कार्रवाई बन गई हैं।
6. धार्मिक स्वतंत्रता पर हमले – मस्जिदें और मदरसे निशाने पर
हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुसलामानों को एक हाथ में कंप्यूटर तो दूसरे हाथ में क़ुरआन देने की बात करते हैं। साथ ही सब का साथ-सबका विकास सरकार का बहुप्रचारित स्लोगन है। हक़ीक़त ये है कि भाजपा की सरकार वाले राज्यों में अज़ान पर पाबंदियां, मदरसों की फंडिंग रोकना और मस्जिदों को गिराना आम बात होती जा रही है — ये सब उस मानसिकता का नतीजा हैं जो मुसलमानों की धार्मिक पहचान को मिटाना चाहती हैं।
7. आर्थिक बहिष्कार और नफ़रत का माहौल
देश के प्रधान विश्व भर में मुस्लिम देशों से संबंधों की प्रगाढ़ता बढ़ा रहे हैं. लाखों भारतीय खाड़ी देशों में काम करते हैं, उन देशों से अपने कारोबारी रिश्ते हैं। इधर अपने ही मुल्क में भगवा धारी कथित हिन्दू नामलेवा कुछ संगठन मुस्लिम व्यापारियों, कारीगरों और दुकानदारों का बहिष्कार करने का अभियान चलाते हैं। मुसलमानों को कई जगह इनके दुर्व्यवहार और हिंसा का सामना तक करना पड़ रहा है। मीडिया, सोशल मीडिया और ज़मीनी स्तर पर मुस्लिम विरोधी प्रोपेगैंडा फैला कर न सिर्फ उनकी अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाई गई है, बल्कि उनके आत्म-सम्मान को भी।
8. वक़्फ़ संशोधन क़ानून– मुसलमानों की ज़मीनों पर क़ब्ज़ा
हालिया समय वक़्फ़ सबसे अधिक चर्चा में है, सरल शब्दों में समझिये दान की गयी ज़मीन-जायदाद या अन्य चीज़ें। वो ज़मीनें जो सदियों से मुसलमानों की इबादत, शिक्षा और सेवा के लिए वक़्फ़ थीं, अब सरकार की नज़रों में हैं। संशोधित क़ानून के माध्यम से इन संपत्तियों को सरकारी नियंत्रण में लेने की साज़िश की जा रही है। प्रबुद्ध लोगों का कहना है कि इसका इस्तेमाल भाजपा प्रेमी बड़े कारोबारी अपने व्यापारिक हितों के लिए करेंगे।
तस्वीर कुछ साफ़ यदि हुई हो तो ये गाँठ बाँध लें कि यह मुसलमानों का मुद्दा नहीं, बल्कि भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र और लोकतांत्रिक मूल्यों के अस्तित्व की लड़ाई है। संविधान के जानकार बताते हैं कि इस दौर में संविधान के कई मौलिक अधिकारों का खुल्लम खुल्ला हनन हो रहा है। अब वक़्त ख़ामोश रहने की बजाय , नागरिकों को जागरूक करने का है। मुसलमानों को चाहिए कि वे शिक्षा, मीडिया और न्यायिक प्रणाली में अपनी मज़बूत भागीदारी सुनिश्चित करें। आम मोहब्बत के चिराग़ हर जगह रौशन करें। प्रेम, सेवा और समर्पण से अपने प्यारे हिन्दुस्तान को और खूबसूरत बनाने में अपना योगदान दें। यह समय की सबसे बड़ी ज़रूरत है।
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। G.T. Road Live का सहमत होना ज़रूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।