शहर से गांव डगर तक की कहानी

जीटी रोड लाइव डेस्क 

भारतीय मूल की अमेरिकन नागरिक सुनीता विलियम्स आखिर धरती पर वापस लौट आईं हैं ! वे अपने साथी विल्मर के साथ सिर्फ़ आठ दिनों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर गईं थीं पर तकनीकी बाधाओं के चलते उन्हें 286 दिनों यानी 9 महीने तक रुकना पड़ गया। उनकी वापसी का जिस तरह से जश्न मन रहा है वो राहत को पुष्ट करता है। लेकिन एक सवाल भी मन में उठ रहा है कि सुनीता और विल्मोर को इतने दिनों अंतरिक्ष में बिताने का पारिश्रमिक नासा कितना देगा ? क्या  उन्हें वरटाइम मिलेगा? बता दें कि अंतरिक्ष यात्रियों को दूसरे सरकारी कर्मचारियों के समान ही वेतन मिलता है. वे सप्ताह में 40 घंटे काम करते हैं. ओवरटाइम, वीकेंड या अवकाश के लिए उन्हें अतिरिक्त पैसा नहीं मिलता है. नासा के अनुसार, अंतरिक्ष यात्रियों ने पिछले साल 152,000 डॉलर यानी 1.32 करोड़ रुपये से अधिक कमाए.

‘नासा’ से ‘स्पेसएक्स’ तक की यात्रा हमारे समय का एक कड़वा सच

लेकिन इन सबसे इतर आज सवाल सबसे बड़ा ये है कि इन्हें आसमान में इतने दिनों तक क्यों लटका कर रखा गया. वरिष्ठ पत्रकार विनोद वर्मा कहते हैं कि सुनीता विलियम्स को स्पेसएक्स के ड्रैगन कैप्सूल में सुरक्षित वापस तो ले आया गया. तालियां आप बजा ही चुके होंगे. अमरीका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा पिछले नौ महीनों से कोशिश कर रही थी. पर सफल नहीं हो सकी. आख़िर नासा को स्पेसएक्स के साथ गठजोड़ करना पड़ा. ‘नासा’ से ‘स्पेसएक्स’ तक की यात्रा हमारे समय का एक कड़वा सच है. इस बात का अंदाज़ा शायद कम ही लोगों को होगा. वे इस कड़वाहट के ऊपर लिपटे शहद में मगन हैं. नासा को सफलता नहीं मिल रही है. स्पेसएक्स को मिल रही है. नासा सरकारी एजेंसी है. स्पेसएक्स इलॉन मस्क की कंपनी का नाम है.

इलॉन मस्क के पास है अथाह पूंजी, उसका ही दिखेगा जलवा 

बीबीसी हिंदी में बरसों सेवा दे चुके विनोद वर्मा लिखते हैं कि लॉन मस्क उन चुनिंदा लोगों में से हैं जिनके पास अथाह पूंजी है. ये चुनिंदा लोग अपनी पूंजी के दम पर धीरे धीरे अमरीका को चलाने की राह पर हैं. वैसे यह सिर्फ़ अमरीका नहीं पूरी दुनिया की कहानी है. उदारीकरण का मेन प्रोडक्ट. जनता को दी जाने वाली सारी सेवाएं सरकारें धीरे धीरे निजी हाथों में देती जा रही हैं. जैसे ही आप निजी कंपनियों को अवसर देंगे वे सबसे पहले सरकारी कंपनियों को ही बर्बाद करेंगीं. भारत ने टेलीकॉम सेक्टर को निजी कंपनियों के लिए खोला. आज बीएसएनएल की हालत देख लीजिए. सरकारी कंपनियां बर्बाद होंगी और वही सेवाएं निजी हाथों में जाते ही बेहिसाब महंगी मिलने लगेंगीं. और यह सिर्फ़ कंपनियों के साथ ही नहीं संस्थाओं के साथ भी होगा. उदाहरण के लिए भारत में शिक्षा और चिकित्सा को देख लीजिए. न सरकारी स्कूल-कॉलेज में कोई अपने बच्चों को भेजना चाहता है और न सरकारी अस्पताल में इलाज करवाना चाहता है. (आईआईटी, आईआईएम, एम्स, पीजीआई जैसे कुछ गिनती के अपवाद हैं) यह धीरे-धीरे हर जगह होने वाला है. भारत के इलॉन मस्कों को पहचानकर रखिए, वही भविष्य में हमारे तारणहार होंगे. सरकारें सिर्फ़ ठेका देंगी.

 

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