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झारखंड, हेमंत सोरेन और गौतम अडानी की लगभग दो घंटे की मुलाक़ात….यही टाइटल है ना इस ख़बर-कहानी का। ख़बर है -देश के जाने-माने उद्योगपति गौतम अडानी का रांची आकर सूबे के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिलना। अडानी समूह के अध्यक्ष की मुलाक़ात आवासीय कार्यालय में हुई। आईपीआरडी ने इसे औपचारिक भेंट बताया गया है। साथ ये भी जानकारी दी है कि इन दोनों के बीच निवेश से संबंधित कई विषयों पर चर्चा भी हुई है। बैठक लगभग दो घंटे तक चली। कल शाम लगभग 7:00 बजे  गौतम अडानी अपनी एक टीम के साथ चार्टर्ड प्लेन से रांची पहुंचे। CMO में मीटिंग के बाद रात 10 बजे के आसपास रवाना भी हो गए। अब इस भेंट-मुलाक़ात की अंदरूनी कहानी क्या है, चलिए समझने की कोशिश करते हैं।

अडाणी ग्रुप का झारखंडी कनेक्शन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से करीबी रिश्ते को लेकर दिग्गज कार्पोरेट किंग गौतम अडानी चर्चा में रहते हैं। कांग्रेस के स्टार लीडर राहुल गाँधी अडानी को बेजा लाभ पहुंचाने का आरोप मोदी सरकार पर लगाते हैं। ये तो देश व्यापी बात हुई। अडानी ग्रुप का झारखंड से क्या रिश्ता है। दरअसल, अडानी समूह का झारखंड से  जुड़ाव तब बना, जब कंपनी ने गोड्डा में पावर प्लांट स्थापित किया। 1,600 मेगावाट के अल्ट्रा-सुपरक्रिटिकल थर्मल पावर प्लांट का संचालन किया जा रहा है। लेकिन बिजली यहाँ से बांग्लादेश की जाती है। इसकी आलोचना भी जमकर होती रही है। कांग्रेस से विधायक प्रदीप यादव इस मुद्दे को उठाते रहे हैं। उनका आरोप है की प्लांट के लिए एसपीटी एक्ट का उल्लंघन कर जमीन का अधिग्रहण हुआ है. अडानी ग्रुप जिले के मोतिया गांव में 40 लाख टन क्षमता की सीमेंट ग्राइंडिंग इकाई भी ग्रुप खोलने जा रहा है। अडानी की यात्रा को CM हेमंत के उस बयान से जोड़कर देखा जा रहा है, जो कोलकाता में हुए ग्लोबल बिजनेस समिट में उन्होंने कहा था। उन्होंने कहा था कि झारखंड के विकास के लिए निवेश ज़रूरी है। उद्योगपतियों और निवेशकों का झारखंड में स्वागत है। सरकार उनका पूरा सहयोग करेगी।

‘झुकने’ आये या ‘झुकाने’ खुलासा तो आगे होगा!

अडानी के रांची आगमन और मुख्यमंत्री से मिलने की खबर की अलग-अलग व्याख्या राजनीतिक और पत्रकारीय मण्डली में की जा रही है. झामुमो सुप्रीमो दिशोम गुरु शिबू सोरेन पर औपन्यासिक किताब लिख चुके वरिष्ठ पत्रकार विनोद कुमार ने प्रति क्रिया में फेस बुक पोस्ट में लिखा है: तो, अडानी का झारखंड में अवतरण हो गया. कुछ लोग बाग-बाग हैं कि अडानी को झारखंडी शेर ने झुका दिया. जिस तरह मोदी भक्तों को लगता हैं कि ट्रंप को मोदी ने झुका दिया . लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस तरह एलन मस्क मोदी के प्रिय पात्र और वर्तमान में अमेरिका के नियंता बने हुए हैं, उसी तरह अडानी मोदी के नाक के बाल हैं और वे भले ही घोषित रूप से सरकार में एलन मस्क की तरह कोई महत्वपूर्ण पद नहीं रखते, लेकिन देश में तथाकथित विकास की तमाम योजनाएं, खास कर औद्योगिक नीति अडानी के दिशा निर्देश में या कहिए उनके व्यावसायिक हितों के अनुकूल बन रहे हैं.

झारखंड में अडानी का ट्रैक रिकॉर्ड रहा है बेहद ख़राब

हमे यह भी याद रखना चाहिए कि एलन मस्क और अडानी दुनिया के अमीर हैं और दोनों शुद्ध रूप से व्यापारी हैं. अपने व्यावसायिक हितों के लिए वे किसी से भी मिल सकते हैं. मूल सवाल है कि अडानी से हेमंत सोरेन ने अपने सरकारी आवास पर दो घंटे क्या बात की? इसकी कोई जानकारी नहीं. बस गुलदस्ता पकड़े दोनों दिखाई देते हैं और दोनों के चेहरे पर मुसकान है. सरकारी विज्ञप्ति में बस इतना कहा गया है कि राज्य के विकास और राज्य में निवेश के मसले पर दोनों ने बात की. सवाल उठता है कि निवेश करने के लिए तो अडानी हमेशा तत्पर रहेंगे. उनके पास पैसा है और उसका फायदा निवेश में ही है. लेकिन निवेश किन शर्तों पर. क्योंकि झारखंड में उनका ट्रैक रिकॉर्ड बेहद खराब रहा है. जो जमीन खुले मार्केट में 43-44 लाख रुपये एकड़ थी, गोड्डा में अपने पावर प्रोजेक्ट के लिए महज 3-4 लाख रुपये प्रति एकड़ अधिग्रहित की. वह भी संथाल परगना टीनेंसी एक्ट के खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन कर. पूर्व के नियमानुसार उन्हें 25 फीसदी बिजली सरकार द्वारा तय मूल्य पर राज्य सरकार को देनी चाहिए थी, लेकिन वे उत्पादित बिजली सीधे बांग्लादेश को भेज रहे हैं.

किस वजह से भागे-भागे झारखंड आये गौतम अडानी 

उल्लेखनीय है कि अभी के बजट सत्र में इन मुद्दो पर गंभीर चिंता व्यक्त की गयी थी और राज्य सरकार ने इस मामले की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय कमेटी के गठन की भी घोषणा की थी. जाहिर है कि अडानी इसी वजह से भागे-भागे झारखंड आये हैं. लेकिन वे झुकने आये हैं या राज्य सरकार को झुकाने, यह तो आने वाले कुछ दिनों में पता चलेगा. अहम सवाल यह है कि क्या छोटानागपुर टीनेंसी एक्ट का उल्लंघन कर रघुवर सरकार ने जिस तरह जमीन का अधिग्रहण कर अडानी को दिया, उसका कोई समाधान निकलेंगा? पावर प्रोजेक्ट बंद कर दिया जाये, इसकी तो कोई उम्मीद नहीं, लेकिन क्या जमीन के मूल्य में कोई संशोधन करने के लिए अडानी को बाध्य किया जायेगा? विस्थापितों को पक्की नौकरी देने के लिए कहा जायेगा?

कृषि योग्य जमीन या वन क्षेत्र की भूमि कारपोरेट को दे दी जायेगी 

क्या उनसे पूछा जायेगा कि जब वे आस्ट्रेलिया से परिष्कृत कोयला आयात कर ही रहे हैं पावर प्रोजेक्ट के नाम पर, तो फिर उन्हें माइ निंग के लिए और जमीन की जरूरत क्यों है? यहां यह समझना जरूरी है कि झारखंड में कृषि योग्य भूमि बहुत कम है. आगे किसी तरह के निवेश का मतलब यह कि कृषि योग्य जमीन या वन क्षेत्र की जमीन कारपोरेट को दिया जायेगा. इसमें कोई कानूनी अड़चन नहीं कि वन क्षेत्र की जमीन कारपोरेट को नहीं दिया जा सके. केंद्र सरकार वन कानूनों में पहले से ही संशोधन कर चुकी है जिसके तहत विकास के नाम पर वन क्षेत्र की जमीन का अधिग्रहण बिना ग्राम सभाओं से पूछे किया जा सकता है.यह तो हेमंत सरकार को तय करना है कि वह किन शर्तों पर राज्य में अदाणी से निवेश करवाने वाली है? इसी से इस बात का भी खुलासा होगा कि अडानी ‘झुकने’ के लिए आये हैं या सरकार को ‘झुकाने’ के लिए?

 

 

 

 

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