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गुरुवार झारखण्ड चैम्बर की महिला उद्यमिता उप समिति की बैठक की गई. इस बैठक में  उप समिति चेयरमैन सह कार्यकारिणी सदस्य आस्था किरण की अध्यक्षता में चैम्बर भवन में संपन्न हुई. इस की बैठक में चैम्बर अध्यक्ष परेश गट्टानी, महासचिव आदित्य मल्होत्रा, सह सचिव नवजोत अलंग, कोषाध्यक्ष रोहित अग्रवाल, कार्यकारिणी सदस्य मुकेश अग्रवाल, संजय अखौरी, उप समिति चेयरमैन सह कार्यकारिणी सदस्य आस्था किरण सदस्य अरुण भर्तिया, माला कुजूर, अनुराधा चौहान अलीशा गौतम उरांव, पिया बर्मन, साहिनी रे, मोनालिषा चौधरी, रेखा शरण, रविंदर सिंह, अनुप्रिया, पारित झा, अनुपमा विश्वकर्मा, संगीता सिन्हा, प्रीति मगदली सांघा, पूर्णिमा विजय, राजना कुमारी, नीतू सिंह सहित अन्य सदस्य मौजूद रहे.

महिला सशक्तिकरण और स्थानीय रोजगार का भी एक सशक्त माध्यम है

कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए आस्था किरण ने उद्घाटन टिप्पणी प्रस्तुत करते हुए हथकरघा की सांस्कृतिक धरोहर और इससे जुड़ी महिला उद्यमियों की भूमिका पर प्रकाश डाला.  उन्होंने कहा कि “हथकरघा न केवल हमारी परंपरा है, बल्कि महिला सशक्तिकरण और स्थानीय रोजगार का भी एक सशक्त माध्यम है .” इसके बाद “हथकरघा का उत्सव – विरासत और अवसर” विषय पर एक प्रेरणादायक संवाद हुआ. जिसमें विश्व हथकरघा दिवस के महत्व और महिलाओं द्वारा इस क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों पर चर्चा की गई . कार्यक्रम का आकर्षण रहा “इंटरएक्टिव सेशन: बुनते अवसर”, जिसमें बैठक में उपस्थित महिला उद्यमियों ने अपने पहने हुए हथकरघा वस्त्रों की कहानियाँ साझा कीं. साथ ही, स्थानीय बुनकरों से सहयोग, उद्यमिता के नए अवसरों और डिज़ाइन पर विचार-विमर्श किया गया.

चैम्बर अध्यक्ष परेश गट्टानी और महासचिव आदित्य मल्होत्रा ने संयुक्त रूप से कहा कि हथकरघा से बने कपड़ों को और बड़े रूप से विस्तार करना है ताकि देश ही नहीं विदेशों में भी यह अपनी एक पहचान बना सके. इसके लिए उन्होंने महिलाओ और सभी व्यापारियों को हर संभव सहायता देने का आश्वाशन दिया. इसके उपरांत “स्थानीय से वैश्विक: हथकरघा का पुनरुत्थान” विषय पर पैनल समूह चर्चा हुई. इस चर्चा में बाज़ार से जुड़ाव, डिज़ाइन और नवाचार, कौशल प्रशिक्षण और FJCCI की भूमिका जैसे विषयों पर विस्तार से संवाद हुआ. कार्यक्रम में हस्तकरघा और उनसे जुड़े व्यवसाय के लिए सुझाव आमंत्रित किए गए . कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन कार्यकारिणी सदस्य मुकेश अग्रवाल ने दिया. यह कार्यक्रम न केवल हथकरघा उद्योग की समृद्ध परंपरा को सम्मानित करने का एक प्रयास था, बल्कि इसमें स्थानीय कारीगरों को वैश्विक मंच तक पहुँचाने के संकल्प को भी बल मिला.

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