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किसी भी देश को आगे बढ़ने में मदद करती है शिक्षा। सही शिक्षा तंत्र पर देश की उन्नति निर्भर करती है। देश में शिक्षा तंत्र जितना मजबूत होगा, देश उतनी ही तेजी से शिखर पर पहुँच पायेगा। साथ ही साथ देश के युवा जोकि किसी भी देश के भविष्य होते हैं, उन्हें शिक्षित होना है, ताकि देश की बाग-डोर सही हाथों में जा सके। लेकिन इन सभी के लिए जरुरी है शिक्षा को मजबूत करना। हाल की संसदीय रिपोर्ट में देखा गया है कि IIT ,IIM जैसे संस्थानों में 56 प्रतिशत प्रोफेसरों के पद खाली हैं। इससे छात्रों की पढ़ाई और प्लेसमेंट पर असर पड़ रहा हैं। आईआईटी और आईआईएम जैसे प्रमुख संस्थानों में दो वर्षों में 15 प्रतिशत की गिरावट आई है ,जिसमें आईआईटी दिल्ली भी शामिल है।

अनुसूचित जनजाति के लिए 1,154 में से 472 पद खाली

प्रोफेसर स्तर की बात करें तो 2,540 स्वीकृत पदों में से 56.18 प्रतिशत पद खाली हैं। जबकि एसोसिएट प्रोफेसर स्तर पर 5,102 में से 38.28% पद खाली हैं। इसी तरह से सहायक प्रोफेसर (एंट्री लेवल) के 11,298 पदों में से 17.97% पद खाली पड़े हैं। यह न केवल टीचिंग को प्रभावित कर रहा है बल्कि स्टूडेंट की भी कमी हो रही है। आरक्षित वर्गों के लिए निर्धारित शिक्षकों के पदों की स्थिति और भी चिंताजनक है। पिछड़ा वर्ग के 3,652 स्वीकृत पदों में से 1,521 पद खाली हैं। जबकि अनुसूचित जाति (SC) के 2,315 पदों में से 788 पद अब तक खाली है। अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए 1,154 में से 472 पद खाली हैं।

खाली पदों को जल्द भरने की मांग

इन सभी समस्याओं से निपटने के लिए संसदीय समिति ने भर्ती प्रक्रिया को तेज करने के लिए कई सुझाव दिए हैं। खाली पदों को जल्द भरने की मांग की गयी है। ऑनलाइन आवेदन, स्क्रीनिंग और सिलेक्शन प्रोसेस को डिजिटल करने पर जोर दिया है। शिक्षा मंत्रालय को नियमित रूप से कार्यबल विश्लेषण करने की सिफारिश की गई है ताकि छात्र-शिक्षक अनुपात संतुलित रहें। नियुक्ति प्रक्रिया को निष्पक्ष, योग्यता-आधारित और गैर-भेदभावपूर्ण बनाने की बात कही गई है।

 

 

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