राजनीतिक डेस्क
विश्व की सबसे बड़ी पार्टी का तमगा गले में लटकाए घूमने वाली भाजपा को अपने अध्यक्ष का चुनाव कराने में पसीने छूट रहे हैं। बार-बार कई राज्यों के विधानसभा चुनाव का इंतज़ार किया जाता है, अब तो दिल्ली का चुनाव भी हो गया. भाजपा की सरकार भी बन गयी। अब क्या भाजपा जल्द ही अपना नया राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लेगी। क्योंकि बिहार, पश्चिम बंगाल, असम और दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में चुनाव आने वाले महीनों में होने हैं। आम बात महीनों से चर्चा में है कि संघ की सहमति से ही इस बार पार्टी की कमान किसी सुयोग्य और कर्मठ नेता को सौंपी जाएगी। उधर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को भी संघ के इस फैसले पर मुहर लगानी होगी। पेच दरअसल यहीं अटका हुआ है। हालाँकि केन्द्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने डंके की चोट पर कहा है कि मार्च यानी इस माह के मध्य में पार्टी को नया अध्यक्ष मिल जायेगा।
क्या हो सकती है सम्भावना
राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि भाजपा दक्षिण भारत में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है। सम्भावना प्रबल है कि क्षेत्रीय संतुलन को साधते हुए किसी एक दक्षिण भारतीय नेता को यह जिम्मेदारी दी जा सकती है। भाजपा कोई भी निर्णय बहुत सोच समझ कर लेती है। जिसमें क्षेत्रीय, वर्गीय और जातीय संतुलन की अहम भूमिका होती है। अब जबकि दिल्ली का मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता को बनाया गया है, तो यह भी क़यास कुछ लोग लगा रहे हैं कि पार्टी इस बार किसी महिला को अध्यक्ष बना सकती है। क्योंकि पार्टी का महिला सशक्तिकरण पर भी जोर रहता है, वहीँ महिला आरक्षण बिल के पारित होने का प्रभाव भी जनता के बीच देखना है, दिखाना है। तीसरा बिंदु है, संगठन क्षमता और संघ की पसंद।
किनका खुला सकता है भाग्य
महीनों ही नहीं बल्कि साल हो गए. डेढ़ साल हो गए। फ़िज़ा में कई नाम गर्दिश कर रहे हैं, जो अध्यक्ष पद की होड़ में हैं। इनमें दक्षिण भारत से मजबूत दावेदार बताये जा रहे हैं, जी किशन रेड्डी। यह तेलंगाना के वरिष्ठ नेता हैं। युवा मोर्चा से लेकर केंद्रीय मंत्री तक का सफर तय कर चुके हैं। इन्हें मोदी और शाह का भी समर्थन हासिल है। वनाथी श्रीनिवासन तमिलनाडु से बीजेपी की विधायक हैं और महिला मोर्चा की प्रमुख हैं। उन्होंने 2021 के विधानसभा चुनाव में कमल हासन को हराकर चर्चा बटोरी थी। इनके अलावा ‘दक्षिण की सुषमा स्वराज’ कही जाने वाली डी पुरंदेश्वरी का भी ज़िक्र मिलता है, वो आंध्र प्रदेश की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। अगर पार्टी किसी महिला को नेतृत्व सौंपना चाहेगी तो इन दोनों के नाम सरे फेहरिस्त है। संगठन पर मज़बूत पकड़ रखने वाले ओडिशा से आने वाले भाजपा नेता धर्मेंद्र प्रधान भी रेस में हैं. क्योंकि ये कई राज्यों में चुनावी प्रबंधन कर चुके हैं। पूर्वी भारत से अब तक कोई अध्यक्ष भी नहीं बना है। उत्तर प्रदेश और बिहार के चुनाव को देखते हुए भूपेंद्र यादव कि भी अध्यक्ष बनने की ज़ोरों से चर्चा है। इन्हें मजबूत रणनीतिकार मन जाता है और यूपी और बिहार में यादव समाज के वोटर भी निर्णायक रोल निभाते हैं। हालाँकि भूपेंद्र यादव मूलत: राजस्थान के रहने वाले हैं। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर को भी दौड़ हैं। इन्हें संघ और मोदी का करीबी माना जाता है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके और वर्तमान में केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान की भी संगठन पर मजबूत पकड़ है। वह संघ के भी करीबी माने जाते हैं।
इन सारे मामले पर भास्कर समूह के संपादक रहे वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग की राय
श्रवण गर्ग का कहना है कि दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक दल जो 2014 से दिल्ली की सत्ता में क़ाबिज़ है वह पूरे देश में तो सारे चुनाव एक साथ करवाकर विपक्षी सरकारों के अस्तित्व के लिए चुनौती बनना चाहता है पर पिछले दो सालों से अपना ही एक अदद पार्टी-अध्यक्ष नहीं चुन पा रहा है ! 2019 के बाद से जे पी नड्डा ही पद पर बने हुए हैं। उनका आधिकारिक कार्यकाल 2023 में समाप्त हो चुका है। सवाल यह है कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का नारा बुलंद करने वाली पार्टी अपने ही संगठन में बूथ, मण्डल, ज़िला और राज्य-स्तर पर चुनाव संपन्न क्यों नहीं करवा पा रही है ? कोई तो कारण होगा ? क्या पार्टी को उसके लगभग बीस करोड़ सदस्यों में कोई योग्य उम्मीदवार नहीं मिल पा रहा है या फिर अंदरखाने कुछ ऐसा चल रहा है जिसकी जानकारी बाहरी दुनिया को नहीं मिल पा रही है ? नये अध्यक्ष को लेकर नया दावा यह है कि मार्च महीने में चुन लिया जाएगा !
अनौपचारिक चर्चाओं के ज़रिए जो बात छनकर बाहर आ रही है वह यह है कि नये अध्यक्ष के नाम पर नागपुर और दिल्ली के बीच सहमति नहीं बन पा रही है और उसी के चलते राज्यों में संगठनात्मक चुनावों को पूरा करने की गति धीमी कर दी गई है। लोकसभा चुनावों के दौरान संघ की ज़रूरत को लेकर नड्डा के द्वारा दिये गए बयान के बाद से ही भाजपा-नेतृत्व के प्रति नागपुर की नाराज़गी बनी हुई है। संघ शायद चाहता है कि पार्टी प्रमुख के पद पर उसकी पसंद का ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो भाजपा में नागपुर की ज़रूरत को स्थापित कर सके ! आश्चर्यजनक है कि जिस पार्टी के नेता लोकसभा चुनावों के दौरान कहते रहे कि देश के संविधान को बदलने की ज़रूरत है वे ही अपना नया अध्यक्ष चुनने में हो रहे विलंब को लेकर पार्टी संविधान की प्रक्रिया के अनुसार संगठनात्मक चुनाव करवाए जाने की आड़ ले रहे हैं !