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चुनाव आयोग के बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफार्म यानी एडीआर ने बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) अभियान कराने के फैसले को चुनौती दी है. संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर जनहित याचिका में एसआइआर के फैसले पर तत्काल रोक की मांग की गयी है.
याचिका में कहा गया है कि आयोग ने नागरिकता साबित करने के लिए ऐसे दस्तावेजों की मांग की है, जिससे कई लोग मतदान करने से वंचित हो सकते हैं. आयोग का फैसला संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 व 326 को उल्लंघन करता है. यह फैसला जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 की धारा 21 (ए) और मतदाता पंजीकरण कानून 1960 के खिलाफ है.
एडीआर ने अपनी याचिका में कहा कि 24 जून को चुनाव आयोग द्वारा जारी आदेश ने मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने की जिम्मेदारी राज्य से हटाकर नागरिकों पर डाल दी है. इसमें आधार या राशन कार्ड जैसे पहचान दस्तावेजों को शामिल नहीं किया गया है, जिससे वंचित समुदायों और गरीबों के मतदान से वंचित होने की संभावना और बढ़ गई है. एसआईआर प्रक्रिया के तहत घोषणापत्र की आवश्यकता अनुच्छेद 326 का उल्लंघन करती है, क्योंकि इसमें मतदाता को अपनी नागरिकता और अपने माता या पिता की नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज देने की आवश्यकता होती है, ऐसा न करने पर उसका नाम मसौदा मतदाता सूची में नहीं जोड़ा जाएगा और उसे हटाया भी जा सकता है.”
एडीआर ने अपनी याचिका में कहा कि नागरिकता दस्तावेज के लिए एसआईआर की आवश्यकता मुसलमानों, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और प्रवासी श्रमिकों सहित हाशिए पर रहने वाले समुदायों को असमान रूप से प्रभावित करती है, जिनके पास ऐसे दस्तावेजों तक पहुंच नहीं हो सकती है. याचिका में आगे कहा गया है, “बिहार में गरीबी और पलायन की दर बहुत अधिक है, जहां कई लोगों के पास जन्म प्रमाण पत्र या माता-पिता के रिकॉर्ड जैसे दस्तावेज नहीं हैं.