शहर से गांव डगर तक की कहानी

हफ़ीज़ क़िदवई
ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियां, किलकि किलकि उठत,
धाय गिरत भूमि लटपटाय, धाय मात गोद लेत दशरथ की रनियां ।।
वह बालक राम जिनके घुटनों के बल चलने पर तुलसी की आँखों में प्रेम भरी चंचलता दौड़ उठती है और वह यह बोल उठते हैं। राम के बचपन का यह वर्णन उनके आगे आने वाले जीवन के संघर्षों से दूर हैं। दशरथ की सब रानियां राम को अपने आँगन में देख मुस्कराती हैं, उनसे लाड़ करती हैं, उन्हें पुचकारती,उनसे खेलती हैं मगर किसे पता कि जब यह बालक अपने अधिकार की पुकार करेगा तो उसपर वात्सल्य लुटाने वाली मां ही उस अधिकार की चुनौती बन जाएंगी। देखिये जिन किरदारों ने संसार की दृष्टि और दिशा दोनों बदली है, उनमें से राम ही वह किरदार हैं, जो मानवीय मनोविज्ञान और व्यवहार के सबसे निकट हैं। जिनके जीवन का हर हिस्सा हमारे सबके घर परिवारों में होता हुआ दिखाई देगा।
राम जी का जीवन प्राणिमात्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें मानवजीवन की वास्तविक जटिलताओं का समाधान है। एक बेटा जो तीन माताओं के आँगन में जन्म लेता है। उसे बड़े होने पर उसकी ही छत से दूर कर दिया जाता है और करता कौन है, वह जिसे जीवन भर मां सिर्फ कहा नही गया है, बल्कि माना गया है।
यहाँ से शुरू होता है राम का वह सन्देश,जिसे यदि मान लिया जाए तो संसार की कितनी ही समस्याओं का निदान हो जाए। कभी मौका मिले तो पुरुष से पुरुषोत्तम बनने की दृष्टि से राम को देखना, उनके नैन नक़्श को नही,उनके कद कामद को नही,उनकी लम्बी गर्दन और मज़बूत भुजाओ को नहीं, उनकी शँख के समान गर्दन और ऊँचा माथा नही,चमकता मुकुट और धनुष नही,बल्कि उन्हें ही देखना। जब उन्हें देखना तब उनके दिल को देखना। दिल में झाँकने की कोशिश करना।उस कोशिश में तुम महसूस करोगे की तुम्हे एक छाँव सी मिल रही है। तुम्हारे बेचैन दिल पर नरम हवा का झोखा सा महसूस होगा।
तुम पलट कर देखना की आखिर वोह क्या है जिसने राम के दिल में इस क़दर तरावट दी है। जानते हो वोह क्या है जिसने उनको पुरुषोत्तम राम बनाया। वोह था उनका माँ के प्रति समर्पण। ऐसा नही है कि वह छल,प्रपंच,षड्यंत्र,कपट नही जानते थे,सब कुछ जानकर भी माँ के वचन का मान रखना उन्हें सर्वोत्तम बनाता है। माता कौशल्या का कहना तो, हर बेटा मान सकता है,सब अपनी माँ की इच्छा को पूरी कर सकते हैं मगर माता कैकेयी का मान रखना ही तो उन्हें राम बनाता है। अब जब खुद को राम जी का भक्त कहना, तो उनके इस चरित्र को सामने रखना और अपने चरित्र को मिलाना की तुम्हारा कोई बोल,कोई कार्य,कोई व्यवहार,तुम्हारी माँ को कष्ट तो नही पहुँचाता है। क्या तुम किसी दूसरे की माँ की इज़्ज़त उतनी ही करते हो जितनी अपनी माँ की।
तुम्हारे उठते क़दम से किसी माँ का दिल तो नही दहलता है। तुम्हारे सख़्त होते बोल से कोई माँ डरकर सहमकर खुद में तो सिमट नही जाती है। कहीं माँ तुमसे अपनी कोई ज़रूरत कहते तो नही डरती है, अगर यह है, तो मेरा यक़ीन करो तुम रामदर्शन से बहुत दूर हो
यदि दिल में राम के आने की आहट हो, तो प्रेम से,त्याग से, समर्पण से दूसरे दिलों को जीतने की कोशिश करना । राम हर उस दिल में ही रहेंगे जिनमे मोहब्बत हो,त्याग हो,समर्पण हो,सहिष्णुता हो,संवेदना हो,बाकि लोग ताउम्र ढूंढे उनको,इन गुणों के बिना उन्हें सब कुछ मिल सकता है, बस नही मिलेंगे तो राम । जब किसी हृदय में रामचरित्र स्थापित हो जाए तो उसके सामने रावण,कुंभकर्ण,जरासंध,बालि,मेघनाद जैसे चरित्रों का मिटना ही सत्य है।
राम हमारी संस्कृति हैं। उनका चरित्र ही हमारा जीवन है। उनका दर्शन हमारा आध्यात्म है। राम निर्बल की रक्षा करने, असहाय को सहारा देने और अहंकार को मिटाने का रास्ता दिखाते हैं। राम त्याग से रामराज्य का मार्ग प्रशस्त करने का दर्शन देते हैं । राम का वनवास राजा राम को भगवान राम बनने की प्रक्रिया की गुत्थियों को सुलझाता है । जब राम से महल की छत छीन ली जाती है, उनसे घर छोड़कर निकल जाने को कहा जाता है, तब राम पूरे भारतवर्ष को अपना घर बना लेते हैं । पैरों में चुभने वाले कांटे,जंगलों में मिलने वाले साथियों के प्रेम के आगे कुछ भी नही रह जाते हैं। जिसे मात्र एक राज सिंहासन के लिए वनवास भेज दिया गया था,वह संसार का राजा बनकर लौटता है। अयोध्या की माटी में ठुमक ठुमक चलने वाले राम,संसार को दृष्टि दिशा देने वाले भगवान राम बन जाते हैं और संसार में त्याग,समर्पण,मर्यादा,मूल्यों,सत्य,न्याय का राज स्थापित होता है।
राम जी के शरीर पर एक केवल एक ही कपड़ा रह जाए ,उनसे सब कुछ छीन लिया गया हो,फिर भी वह प्रचंड शक्ति,वैभव और विशालता, कठोरता,उत्तेजना के पर्याय रावण जैसे अहंकार को तोड़ने के लिए पर्याप्त है, क्योंकि सत्य उनके साथ है । सत्य जिसके साथ होता है, राम उसके साथ हैं। जो सत्यमार्ग पर होगा, वह ही राम के मार्ग का अनुयायी होगा।

(लेखक जन सरोकारी पत्रकार हैं। इतिहास और संस्कृति पर गहरी पकड़। लखनऊ में रहकर स्वतंत्र लेखन।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। G.T. Road Live  का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।

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