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पिछले महीने बिहार में हुए स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न यानी एसआईआर के प्रथम चरण के बाद बीते एक अगस्त को चुनाव आयोग की ओर से जारी ड्राफ्ट मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां सामने आई है. बीते दिनों इसे लेकर बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने भी प्रेस कांफ्रेंस कर सवाल उठाया था कि कई लोगों के मकान संख्या के आगे शून्य लिखा हुआ है और ऐसे लोगों की संख्या लाखों में है. तो वहीं अब बीबीसी की ग्राउंड रिपोर्ट में सामने आया है कि ड्राफ़्ट सूची में ग़लत तस्वीरें हैं और इसमें ऐसे भी लोगों के नाम मौजूद हैं, जो अब ज़िंदा नहीं हैं.

बिहार में अगले कुछ महीनों में होने वाले विधानसभा चुनाव के ठीक पहले एक महीने यानी 25 जून से 26 जुलाई तक चले स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न (एसआईआर) की प्रक्रिया के बाद बीते एक अगस्त को चुनाव आयोग ने अपडेटेड मतदाता सूची का एक ड्राफ़्ट जारी किया था. इसे लेकर चुनाव आयोग का कहना है कि इस दौरान उसके अधिकारी राज्य के 7.89 करोड़ रजिस्टर्ड मतदाताओं के घर-घर गए और उनकी जानकारी की पुष्टि की.

नई ड्राफ़्ट सूची में 7.24 करोड़ वोटर्स के नाम हैं. जो पहले रजिस्टर्ड वोटरों की संख्या से क़रीब 65 लाख कम है. चुनाव आयोग का कहना है कि हटाए गए नामों में 22 लाख ऐसे हैं, जिनकी मौत हो चुकी है, सात लाख ऐसे लोग हैं जिनका नाम एक से ज़्यादा जगहों पर वोटर के तौर पर मौजूद है और 36 लाख लोग ऐसे हैं जो राज्य से बाहर चले गए हैं. लेकिन विपक्षी दलों और चुनाव के मुद्दे पर काम करने वाले संगठनों का कहना है कि यह प्रक्रिया जल्दबाज़ी में की गई है.

विपक्षी दलों का आरोप है कि चुनाव आयोग ने बिहार में बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए हैं, इनमें ख़ासकर मुस्लिम समुदाय के लोगों के नाम लिस्ट से हटाए गए हैं. बिहार के चार सीमावर्ती ज़िलों में मुस्लिम आबादी अच्छी संख्या में है. विपक्षी दलों का आरोप है कि सत्ता पर काबिज़ भारतीय जनता पार्टी यानी बीजेपी को आने वाले चुनाव में फ़ायदा पहुंचाने के लिए ऐसा किया गया है.

चुनाव सुधार से जुड़ी संस्था एडीआर ने एसआईआर की टाइमिंग पर सवाल उठाए हैं और सुप्रीम कोर्ट भी इस प्रक्रिया की समीक्षा कर रहा है. एडीआर के संस्थापक सदस्य जगदीप छोकर ने बीबीसी से कहा, “यह प्रक्रिया बिहार विधानसभा चुनाव से महज़ तीन महीने पहले शुरू की गई है और इसके लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया. जैसा कि ग्राउंड रिपोर्ट्स में दिखा है, इस प्रक्रिया में गड़बड़ियां हुई हैं और डेटा इकट्ठा करने की प्रक्रिया बेहद दोषपूर्ण थी.”

कोर्ट में एडीआर की दलील थी, ”यह प्रक्रिया लाखों असल मतदाताओं को मताधिकार से वंचित कर देगी. बिहार भारत के सबसे ग़रीब राज्यों में से एक है और यहां ‘हाशिये पर खड़े समुदायों की बड़ी आबादी’ रहती है.” संस्था का कहना है कि एसआईआर के ज़रिए लोगों पर अपनी नागरिकता साबित करने का बोझ डाल दिया गया है, इसके लिए कई मामलों में लोगों को काफ़ी कम समय में ख़ुद के और अपने माता-पिता के दस्तावेज़ों की ज़रूरत पड़ रही है.

ड्राफ्ट सूची में गड़बड़ी का ग्रामीणों का आरोप

ड्राफ़्ट मतदाता सूची जारी होने के बाद पटना और इसके आसपास के गांवों के दौरे में बीबीसी की टीम ने पाया कि दनारा गांव में महादलित समुदाय की बस्ती में रहने वाले ज़्यादातर लोग ऊंची जातियों के खेतों में काम करते हैं या फिर बेरोज़गार हैं और उन्हें एसआईआर या उसके असर के बारे में बहुत कम जानकारी थी. कई लोग इस बात को लेकर भी निश्चित नहीं थे कि कोई अधिकारी उनके घर आया था या नहीं.

वहीं पास के ही खरीका गांव में कई पुरुषों ने बताया कि उन्होंने एसआईआर के बारे में सुना है और फ़ॉर्म भी जमा किए हैं, जिसके लिए फ़ोटो खिंचवाने में 300 रुपये तक ख़र्च करने पड़े. हालांकि सेवानिवृत शिक्षक तारकेश्वर सिंह एसआईआर से सहमत नहीं हैं और इसे गड़बड़ मानते हैं. उन्होंने अपने परिवार के दस्तावेज़ दिखाते हुए ग़लतियों की ओर इशारा किया, जिनमें उनके नाम के साथ ग़लत फोटो लगी हुई थी. उनके अनुसार, उनकी पत्नी सूर्यकला देवी और बेटे राजीव के नाम के साथ भी ग़लत तस्वीरें हैं.

तार्केश्वर सिंह कहते हैं, “लेकिन सबसे गड़बड़ मामला मेरे दूसरे बेटे अजीव का है. उसके नाम के साथ एक अनजान महिला की फ़ोटो लगी है. वहीं उनकी बहू जूही कुमारी के पति के नाम की जगह तार्केश्वर सिंह का नाम लिखा हुआ है, जबकि यहां तार्केश्वर सिंह के बेटे का नाम होना चाहिए था.

उनकी दूसरी बहू संगीता सिंह का नाम एक ही पते के साथ दो बार दर्ज है – जिनमें से केवल एक में सही फ़ोटो और जन्मतिथि लिखी हुई है. उनका कहना है कि उनके कई रिश्तेदारों और पड़ोसियों की शिकायतें भी इसी तरह की हैं. उन्होंने ड्राफ़्ट लिस्ट में अपने रिश्ते के एक भाई का नाम दिखाया, जिनकी पांच साल पहले ही मौत हो चुकी है. साथ ही इसमें कम से कम दो नाम ऐसे हैं जो दो बार दर्ज हैं.

क्या कहना है याचिकाकर्ता एडीआर का

जगदीप छोकर का कहना है, “स्पष्ट है कि मतदाता सूची की कोई जांच नहीं हुई. सूची में मरे हुए लोगों के नाम हैं, नामों का दोहराव है और कई ऐसे नाम हैं जिन्होंने फ़ॉर्म भी नहीं भरा. यह सरकारी मशीनरी और इस प्रक्रिया पर ख़र्च हुए अरबों रुपयों का दुरुपयोग है.” उन्होंने ऐसे मामलों को जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में इन मुद्दों को उठाएंगे. 

जुलाई महीने में अदालत ने कहा था कि अगर याचिकाकर्ता ऐसे 15 असल मतदाताओं का प्रमाण दे दें, जिनका नाम ड्राफ़्ट सूची से ग़ायब है, तो अदालत इस प्रक्रिया पर रोक लगा देगी. छोकर सवाल करते हैं, “लेकिन हम ऐसा कैसे करें, क्योंकि आयोग ने उन 65 लाख नामों की सूची ही उपलब्ध नहीं कराई है, जिन्हें हटाया गया है?” उनका कहना है कि दो जजों की पीठ में से एक न्यायाधीश ने सुझाव दिया कि आने वाले चुनावों से इस प्रक्रिया को अलग कर दिया जाए ताकि वोटर लिस्ट की समीक्षा के लिए अधिक समय मिल सके. छोकर कहते हैं, “अगर ऐसा हो जाए तो मुझे ख़ुशी होगी.”

एसआईआर को लेकर राजद ने उठाए सवाल

एसआईआर और वोटरों की ड्राफ़्ट सूची पर मुख्य विपक्षी दल राजद ने सवाल उठाए हैं, जबकि सत्तारूढ़ जनता दल (यूनाइटेड)-बीजेपी गठबंधन इसके समर्थन में है. राजद नेता शिवानंद तिवारी का कहना है, “इस पुनरीक्षण की जटिल प्रक्रिया ने कई लोगों को उलझन में डाल दिया है.” शिवानंद तिवारी ने चुनाव आयोग के 98.3% मतदाताओं के अपने फ़ॉर्म भरने के दावे पर सवाल उठाए हैं.

उनका कहना है, “ज़्यादातर गांवों में हमारे मतदाता और कार्यकर्ता बताते हैं कि ब्लॉक लेवल ऑफ़िसर (बीएलओ) उनसे मिलने ही नहीं आए.” “बीएलओ को आयोग ने घर-घर जाने के लिए नियुक्त किया है, वे आमतौर पर स्थानीय स्कूल शिक्षक होते हैं. इनमें से कई बीएलओ प्रशिक्षित नहीं हैं और उन्हें फ़ॉर्म अपलोड करना नहीं आता है.” चुनाव आयोग का कहना है कि बीएलओ ने “बहुत ज़िम्मेदारी से काम किया है” 

शिवानंद तिवारी ने आरोप लगाया, “आयोग पक्षपात कर रहा है और यह चुनाव में जोड़-तोड़ करना है.” उन्होंने कहा, “हमें लगता है कि निशाने पर वे सीमावर्ती इलाक़े हैं, जहां बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी रहती है जो कभी बीजेपी को वोट नहीं देती.”

एनडीए ने आरोपों को किया खारिज

बीजेपी और जेडीयू ने इन आरोपों को ख़ारिज करते हुए कहा, “ये पूरी तरह से राजनीतिक आरोप हैं.” बीजेपी सांसद भीम सिंह का कहना है, “सिर्फ़ भारतीय नागरिकों को वोट का अधिकार है और हमें लगता है कि हाल के वर्षों में सीमावर्ती इलाक़ों में बड़ी संख्या में रोहिंग्या और बांग्लादेशी आकर बस गए हैं. इन्हें सूची से हटाना ज़रूरी है. एसआईआर का किसी के धर्म से कोई लेना-देना नहीं है. विपक्ष यह मुद्दा इसलिए उठा रहा है, क्योंकि उसे पता है कि वह आगामी चुनाव हारने वाला है और हार का ठीकरा फोड़ने के लिए बहाना चाहिए.”

जेडीयू के मुख्य प्रवक्ता और विधान परिषद के सदस्य नीरज कुमार सिंह ने कहा, “चुनाव आयोग तो सिर्फ़ अपना काम कर रहा है. सूची में बहुत सारे मतदाताओं के नाम दो या तीन बार दर्ज हैं. तो क्या उसे ठीक नहीं किया जाना चाहिए?”

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