शहर से गांव डगर तक की कहानी

ज़ैग़म मुर्तज़ा

कुछ दिन से मुसलमानों के दरमियान एक नई चरस वबा की तरह फैली है। हर चंटू-बंटू लिख रहा है कि हमें अगले पंद्रह बीस साल की प्लानिंग करने की ज़रूरत है। मुसलमान सबसे पहले शैक्षणिक, आर्थिक और रोज़गार के मोर्चे पर ध्यान दें। मज़बूत बनें, पढ़ लिख कर सिस्टम में जाएं, देश की मुख्यधारा में शामिल हों। इन ज्ञानचंदों से पूछिए, मुसलमान अबतक इनमें से क्या नहीं कर रहा है? रिक्शा-ठेले वाले तक तो अपने बच्चों को उंगली पकड़कर स्कूल ले जाते हैं। लेकिन स्कूल में सौतेला बर्ताव हो, मानसिक उत्पीड़न किया जाए, और बच्चे कॅ धर्म के आधार पर नीच व्यवहार का सामना करना पड़े तब? स्कूल में साथी उसे मु ल्ला, कटु आ, पाकिस्तानी कहें, टीचर उसका टिफिन झांके तो? आप कहेंगे अपने इदारे बनाइए। नहीं बनाए हैं क्या? ग्लोकल, जौहर, एएमयू, जामिया, जामिया हमदर्द, इंटीग्ल, दारुल हुदा… इन समेत देशभर में छोटे-बड़े तमाम इदारे हैं। लेकिन इनके बारे में पता कीजिए, सबके सब राज्य के निशाने पर हैं। इनको बनाने, चलाने वाले या तो जेल में हैं, या तड़ीपार हैं, या फिर ईडी-सीबीआई के चंगुल में हैं। राज्य इनकी ग्रांट काट रहा है, नोटिस थमा रहा है, बच्चों का उत्पीड़न कर रहा है, मुक़दमे लगा रहा है, छात्रवृत्तियां बंद कर रहा है, मीडिया के ज़रिए इनके ख़िलाफ नफरत का ऐजेंडा चला रहा है।

कौन जो ईडी, सीबीआई, आईटी विभाग, या पुलिस का निशाना नहीं बने
फिर, सिस्टम में जो लोग काम कर रहे हैं उनसे पूछिए। उनकी दाढ़ियां छट रही हैं। त्यौहारों पर छुट्टी कट रही हैं। इफ्तार करने पर मुक़दमे हो रहे हैं। झूठे आरोप लगाकर नौकरी छीनी जा रही हैं। जेलों में ठूंसे जा रहे हैं और ज़िम्मेदारी के पदों से मुक्त किए जा रहे हैं। पता कीजिए, यूपी जैसे राज्यों में कितने मुसलमान, आईएएस, आईपीएस, पीपीस, पीसीएस हैं। आप बता सकते हैं इनमें कितने डीएम, एसपी, एसडीएम, या डीएसपी हैं? आर्थिक मोर्चे पर भी बताइए ज़रा। अज़ीम प्रेमजी, ज़फर सरेशवाला को छोड़कर कितने हैं जो अभी तक ईडी, सीबीआई, आईटी विभाग, या पुलिस का निशाना नहीं बने हैं? बाक़ी छोड़िए, गोश्त के कट्टीख़ाने तक मुसलमान से छीनकर बनिए और जैनियों को दे दिए। जिन धंधों में बीस साल पहले तक एकाधिकार सा था वहां अब मुसलमान ग़ायब हैं। जैन हड्डी खाल बेच रहे हैं, बनिए-बामन गौमांस विदेश भेज रहे हैं, आप क्या कर रहे हैं? उनकी मुंशीगीरी, या उनको हिस्सेदारी देकर मज़दूरी।
अपने अधिकारों के लिए लड़ना सीखिए, ज़िम्मेदारी मत टालिए
कुल मिलाकर बात ये है कि राज्य अगर दुश्मनी पर आमादा हो जाए तो आप न पढ़ सकते हैं, न पढ़ा सकते हैं, न इदारा बना सकते हैं और न कमा सकते हैं। आपकी इमारतों के नक्शे पास नहीं होंगे, एनओसीनहीं मिलेंगी, लाइसेंस नहीं बनेंगे तो आप क्या करेंगे? ज़ाहिर है भांग और धतूरे की खेती। नंबर एक का कोई काम नहीं कर सकते। इसलिए अपने अधिकारों के लिए लड़ना सीखिए। सत्ता की ज़िम्मेदारी दूसरों पर मत टालिए। शिक्षा, रोजगार, और बुनियादी सुविधाएं देना राज्य का काम है। जहां राज्य मरने तक पर टैक्स ले रहा है, भांति-भांति के कर वसूल रहा है, वहां ये सब काम क्यों नहीं करेगा? टौल, जीएसटी, वैट, सेस, हाउस टैक्स, वाटर टैक्स, इन्कम टैक्स, कार्पोरेट टैक्स समेत ऐसा कौन सा कर है जो मुसलमान राज्य को नहीं चुका रहे? या तो ये सब टैकस देना बंद कर दो वरना राज्य को ज़िम्मेदारी मुक्त मत करो।
राज्य कर रहा अपने नागरिक से दुश्मन जैसा व्यवहार 
फिर दोहराता हूं। राज्य अगर अपने नागरिक से दुश्मन जैसा व्यवहार कर रहा हो, उनके संस्थान, उनके रोज़गार, उनकी अस्मिता, उनकी रीति-रिवाज और उनके खान-पान तक को निशाना बना रहा हो तो? तो फिर कौन सा रास्ता है जिसपर चलकर आप अगले सौ साल में भी सो काॅल्ड प्लानिंग करके शैक्षणिक, आर्थिक और रोज़गार के मोर्चे पर ध्यान दे पाएंगे? ऐसा कौन सा अलादीन का चराग़ ले आएंगे जिससे आप मज़बूत बन जाएंगे, पढ़-लिख कर रातों-रात सिस्टम में आ जाएंगे, और देश की मुख्यधारा में शामिल हो जाएंगे? एक मिनट… वैसे ये मुख्यधारा क्या है जी? सत्तधारी पार्टी की ग़ुलामी या उसकी दलाली? अगर नहीं तो आप कौन सी धारा में हो जिसे मुख्य नहीं माना जा रहा?

(लेखक पत्रकार हैं।  कई अख़बारों के अलावा राज्य सभा TV और ETV में भी सेवाएँ दी।  पुलिसनामा  शीर्षक पुस्तक प्रकाशित।  चंडीगढ़ में रहकर स्वतंत्र लेखन।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। G.T. Road Live  का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।

 

Share.

Comments are closed.

Exit mobile version