शहर से गांव डगर तक की कहानी

 

केपी मलिक

केंद्र में काग्रेस और यूपी में सपा सरकार के खिलाफ भाजपा को जीत दिलाने में जाटों का बहुत बड़ा योगदान है। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी का चुनाव हारना है। साल 2013 के मुजफ्फरनगर के दंगे ने यूपी ही नहीं उत्तर भारत के हिंदी पट्टी के राज्यों में भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने का काम किया था। इस दौरान वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी ने तमाम रेलियों कहते थे कि मैंने जाटों का नमक खाया है मैं आपका बहुत एहसानमंद हूं, पश्चिमी यूपी की रैलियों के दौरान मेरठ में कहा था कि चौधरी चरण सिंह के नाम पर हर जिले में चौधरी चरण सिंह किसान कोष के नाम से किसान कोष बनायेंगे और गन्ना किसानों की परेशानी को दूर करने के लिए 12 दिन में गन्ने का भुगतान होगा। हालांकि वह बात अलग है कि मोदी के वो तमाम वायदे केवल जुमला साबित हुए।

दरअसल देश के जाटों को आरक्षण दिलाने के लिए चौधरी अजीत सिंह ने अंतिम समय में कांग्रेस का दामन थाम कर अपनी पार्टी का भविष्य दांव पर लगाकर जाट आरक्षण लेने का काम किया था जिसे भाजपा की मोदी सरकार के कार्यकाल में अदालत द्वारा उसे खारिज करने पर आरक्षण वापस दिलाने को लेकर अमित शाह ने जाटों से कहा था कि हमारी सरकार बनवाइए हम आपको आरक्षण दिलाने का काम करेंगे, उन्होंने तो यहां तक कहा था कि मैं आपको गारंटी के तौर पर अपनी मूंछ का बाल देता हूं। साल 2014 का लोकसभा चुनाव, 2017 का यूपी का विधानसभा चुनाव, 2019 का लोकसभा चुनाव और 2022 का फ़िर यूपी का चुनाव, तमाम चुनाव में जाटों ने बढ़-चढ़कर भाजपा को वोट दिया। लेकिन इन नेताओं के सभी वायदे जुमले साबित हुए।

बावजूद उसके राजस्थान में जाट मुख्यमंत्री बनने के नाम पर जाटों का वोट लेना, हरियाणा में जाट मुख्यमंत्री बनने के नाम पर जाटों का वोट लिया और अब दिल्ली में जाट मुख्यमंत्री बनने के नाम पर दिल्ली के जाटों को अमित शाह ने वही पुराना जुमला फेंक दिया था कि प्रवेश वर्मा को ही दिल्ली सीएम बनायेंगे, आप लोग तो बस पार्टी और प्रवेश को जिताओं, फिर क्या था दिल्ली के बावले जाट शाह पर भरोसा कर चुनावी दंगल में कूद पड़े और हर-हर मोदी, घर-घर मोदी की माला फेर कर तीन बार के सीएम केजरीवाल पर झाड़ू फेर दी।

बहरहाल दिल्ली में जिस प्रकार से तीन बार की केजरी सरकार को उखाड़ फेंकने का काम जाटों के सहयोग से भाजपा ने प्रवेश वर्मा के नाम को आगे करके किया और जीतने के बाद प्रवेश को मुख्यमंत्री ना बनाकर अपने पुराने रवैए को बरकरार रखते हुए शाह ने एक बार फिर अपने वायदे को जुमला साबित कर दिया। यह जताता है कि भाजपा और संघ जाटों को केवल वोट बैंक के हथियार के तौर पर प्रयोग करने का काम करता है। तो जाटों को अब जाग जाना चाहिए अब समय आ गया है कि वें पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से कहें कि हमारे पास रखा उनका नमक का कर्ज़ और मूंछ का बाल छुड़ा कर ले जाएं। आज हमें यह बात याद करने की आवश्यकता है कि चौधरी छोटूराम, चौधरी चरण सिंह, चौधरी देवीलाल, चौधरी बंशीलाल, नाथूराम मिर्धा, परसराम मदेरणा, शीशराम ओला और चौधरी कुंभाराम आदि हमारे सामाजिक राजनेताओं के पदचिन्हों पर चलकर अपनी पहचान और इज्जत के साथ आज के सियासी तमाशे के दौरान राजनीतिक करने की आवश्यकता है।

विदित हो जाट एक मार्शल कौम है, इसलिए आज हमें अपने पुरखों और पूर्वजों के स्वर्णिम इतिहास को पढ़ने की आवश्यकता है। आज के दौर में दूसरों के पीछे चलकर दरी बिछाने से अच्छा है कि अपनी खेत की मिट्टी में बैठकर एकता के साथ आपसी बैर भूलकर राजनीति की जाए। मुझे वह जमाना याद आता है जब चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के गन्ने के खेत में प्रदेश के मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री के हेलीकॉप्टर उतरा करते थे क्योंकि हमने उनको अपनी ताकत और एकता एहसास कर दिया था। उनका मानना था कि हमारा खेत ही हमारा मंदिर है। क्या हम उसी जाट समाज के वंशज हैं इस बात पर विचार करते हुए अपने गिरेबान में झांकने की आवश्यकता जाटों को है। साभार

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक )

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