शहर से गांव डगर तक की कहानी

पंकज श्रीवास्तव 

सार्वजनिक राजनीति सर्वश्रेष्ठ के चयन की प्रक्रिया नहीं है। यह उपलब्ध विकल्पों में बेहतर के चुनाव की प्रक्रिया है।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 सर पर हैं। मुख्यमंत्री के रूप में योग्यता और अनुभव के आधार पर नीतीश बेहतर विकल्प हैं, लेकिन सार्वजनिक जीवन को अपना सर्वश्रेष्ठ वह दे चुके हैं। प्रकृति के सामने वह विवश हैं। उनकी लाचारी है- वह राजग में भाजपा के साथ रहकर ही चुनाव लड़ेंगे। जबकि भाजपा उनको भावी मुख्यमंत्री के रूप में पेश भी नहीं कर रही है, वह इस बार अपना मुख्यमंत्री बनाना चाहती है। तमाम फर्जी सर्वेक्षणों में भी भावी मुख्यमंत्री के रूप में भाजपा का चेहरा सामने नहीं आ पा रहा है।

भावी मुख्यमंत्री के रूप में तेजस्वी यादव का चेहरा

भावी मुख्यमंत्री के रूप में तेजस्वी यादव का चेहरा लोकप्रियता के शिखर पर दिख रहा है। लेकिन, लगभग आधी शताब्दि के सार्वजनिक जीवन का मेरा जो अनुभव है, मुझे यह बेहतर विकल्प नहीं दिखता। वह दो बार उपमुख्यमंत्री भी रहे हैं। लेकिन,मुझे उनकी योग्यता पर ही नहीं नीति और नीयत पर भी संदेह है। वह बहुत ही फ़ूहड़ व्यक्ति भी हैं-‘सूत्र’ की जो तुकबन्दी उन्होंने ‘मूत्र’ से की,वह उनके सीमित शब्दकोष का प्रमाण है।

प्रशान्त किशोर से भी कमजोर स्थिति चिराग पासवान की

तमाम सर्वे भावी मुख्यमंत्री के रूप में तीसरा चेहरा के रूप में प्रशान्त किशोर की चर्चा कर रहे हैं, जबकि उनको चुनाव ही नहीं लड़ना है। वह अपने जनसुराज के टिकट पर सभी 243 सीटों पर दूसरों को लड़ाएंगे। लेकिन, सभी मानेंगे कि वह मुख्यमंत्री पद की दौड़ में नहीं हैं। वैसे में बिहार का परिपक्व मतदाता उन्हें कितनी सीटें देगा, नहीं कहा जा सकता।लेकिन,यह तो तय है कि वह राजनैतिक शक्ति के रूप में नहीं उभर पाएंगे। प्रशान्त किशोर से भी कमजोर स्थिति चिराग पासवान की होगी। राजग में रहकर चुनाव लड़ें,तो उनकी पार्टी हद से हद 25-30 सीटों पर लड़ेगी। ऐसे में गठबंधन में भी सबसे बड़ा दल उनका होगा नहीं। सो, मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार वैसे भी नहीं होंगे। अगर, राजग से बाहर जाकर लड़े, तो बिहार विधानसभा चुनाव,2020 से बेहतर परिणाम की परिकल्पना नहीं कर सकते। बिहार विधानसभा चुनाव, 2020 में उनकी पार्टी का सिर्फ एक उम्मीदवार जीता था और बाद में वह जदयू में शामिल हो गया था।

कांग्रेस+वामपंथी पार्टियां+जदयू की सरकार बनने की संभावना

हालांकि, कांग्रेस और वामपंथी पार्टियां महागठबंधन में राजद और तेजस्वी के साथ ही हैं, लेकिन सार्वजनिक राजनीति में संभावनाएं आशंकाएं बनी रहती हैं। लोकसभा चुनाव,2024 के दौरान राजद और तेजस्वी ने पप्पू यादव और कन्हैया कुमार के प्रति जो नकारात्मक रवैया अपनाया था, उसे कांग्रेस और राहुल गांधी भूले नहीं है। यह भी कि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस और राहुल गांधी की लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ा है। अगर, किसी कारण महागठबंधन में टूट होती है,राजद गठबंधन से बाहर होता है, तो कांग्रेस और वामपंथी पार्टियां कन्हैया कुमार के चेहरे को आगे करके चुनाव लड़ सकती हैं। चुनाव पश्चात राजनीतिक शक्तियों के नए ध्रुवीकरण के तहत जदयू भी इस गठबंधन में शामिल हो सकती है।यानि चुनाव पश्चात कन्हैया कुमार के नेतृत्व में कांग्रेस+वामपंथी पार्टियां+ जदयू की सरकार बनने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। FB से साभार 

(लेखक ग्रामीण बैंक के रिटायर्ड अधिकारी हैं. सम्प्रति पलामू में रहकर स्वतंत्र लेखन।) 

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। G.T. Road Live का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।

 

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