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बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान को लेकर विवाद गहरा गया है. तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा, राजद नेता मनोज झा और कई गैर-सरकारी संगठनों ने निर्वाचन आयोग के आदेश को रद्द करने का अनुरोध करते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया. याचिकाकर्ताओं का दावा है कि आयोग का यह आदेश संविधान का उल्लंघन करता है,
हालांकि चुनाव आयोग ने रविवार को एक बयान जारी कर यह स्पष्ट किया कि उसने पुनरीक्षण प्रक्रिया पर अपने निर्देशों में कोई बदलाव नहीं किया है. आयोग का यह स्पष्टीकरण कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के उस एक्स पोस्ट की पृष्ठभूमि में आया है, जिसमें खरगे ने लिखा, ‘‘जब विपक्ष, जनता और नागरिक समाज का दबाव बढ़ा, तब आनन फ़ानन में आयोग ने ये विज्ञापन प्रकाशित किये हैं, जो ये कहते हैं कि अब केवल फॉर्म भरना है, कागज दिखाने जरूरी नहीं है.’’ खरगे ने आरोप लगाया कि ‘‘जब जनता का विरोध सामने आता है, तो भाजपा बड़ी चालाकी से कदम पीछे खींच लेती है.”
तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने रविवार को आरोप लगाया कि निर्वाचन आयोग द्वारा बिहार में मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण करने का आदेश आगामी विधानसभा चुनाव में वास्तविक युवा मतदाताओं को मतदान से वंचित करने के लिए है और उसका अगला निशाना पश्चिम बंगाल होगा. मोइत्रा ने निर्वाचन आयोग के आदेश को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है. उन्होंने आरोप लगाया है कि यह संविधान और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के कई प्रावधानों का उल्लंघन करता है.
वहीं राजद सांसद मनोज झा ने भी बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण के निर्देश देने संबंधी निर्वाचन आयोग के आदेश को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है. अधिवक्ता फौजिया शकील के मार्फत दायर अपनी याचिका में झा ने कहा कि निर्वाचन आयोग के 24 जून के आदेश को संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 325 और 326 का उल्लंघन होने के कारण रद्द किया जाना चाहिए.
राज्यसभा सांसद ने कहा कि विवादित आदेश संस्थागत रूप से मताधिकार से वंचित करने का एक माध्यम है और ‘‘इसका इस्तेमाल मतदाता सूचियों के अपारदर्शी संशोधनों को सही ठहराने के लिए किया जा रहा है, जो मुस्लिम, दलित और गरीब प्रवासी समुदायों को लक्षित हैं.’’
टीएमसी और राजद के अलावा, पीयूसीएल और एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स जैसे कई नागरिक समाज संगठनों और योगेंद्र यादव जैसे कार्यकर्ताओं ने निर्वाचन आयोग के निर्देश के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है.