सुधीर पाल
1992 में 74 वें संवैधानिक संशोधन में 18 विषयों को नगर पालिकाओं को हस्तांतरित करने के लिए संसद को पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों में नगरपालिका क्षेत्रों के लिए एक अलग कानून बनाने की आवश्यकता पड़ी। इसी पृष्ठभूमि में ‘पेसा’ की तर्ज पर शहरी इलाकों में ‘मेसा’ अधिनियम की सिफारिश की थी। अधिनियम का उद्देश्य आदिवासियों के भूमि अधिकारों की रक्षा करना और प्रत्येक नगरपालिका में आदिवासी मामलों पर एक स्थायी समिति के गठन का प्रावधान करना था। 30 जुलाई,2001 को संसद में इस बिल को प्रस्तुत किया गया था। बाद में इसे शहरी एवं ग्रामीण विकास से संबंधित संसदीय स्थायी समिति को भेज दिया गया। स्थायी समिति ने नवंबर 2003 में इसे लागू करने की सिफारिश भी कर दी थी। सन् 2010 के मानसून सत्र में यह बिल चर्चा के लिए सूचीबद्ध किया गया था। अब किसी को नहीं पता यह बिल किस हालत में है। आज की तारीख में अनुसूचित क्षेत्र में ‘मेसा’ कानून लागू नहीं है। और इसका कानूनी अस्तित्व नहीं है। यह आदिवासी स्वायत स्वशासन को संवैधानिक मान्यता नहीं देने का षड्यंत्र है। इसके परिणामस्वरूप पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों के नगरपालिका क्षेत्रों में कानूनी शून्यता पैदा हो गई है। विडंबना यह है कि देश भर के लगभग 200 नगरपालिकाएं संविधान द्वारा पाँचवीं अनुसूचित क्षेत्र में निषिद्ध सामान्य नगरपालिका कानूनों को लागू करके असंवैधानिक रूप से कार्य कर रही हैं। झारखंड में एक बार फिर नगर निकायों के चुनाव की तैयारी चल रही है। भारत सरकार सहित कमोबेश सभी राज्य सरकारें नगर या शहरों को अर्थव्यवस्था का ग्रोथ इंजन मानती हैं। स्मार्ट सिटी और अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए आसानी से जमीन का उपलब्ध होना जरूरी है। शहरी विकास का मॉडल प्राइवेट-पब्लिक पार्ट्नर्शिप का है। समुदायों के विकास कार्यों में निर्णय लेने का अधिकार देने वाली ‘मेसा’ कानून के प्रति सरकार की उदासीनता का कारण किसी से छिपा नहीं है।
बाद के दिनों में सुप्रीम कोर्ट ने कई ‘मेसा’ से सम्बंधित याचिकाओं को रद्द कर अनुसूचित क्षेत्र के लोगों का उत्साह ठंडा कर दिया है। न्यायपालिका ने वास्तव में पाँचवीं अनुसूचित क्षेत्र के इन असंवैधानिक निकायों को इस सामान्य तर्क के तहत कानूनी दर्जा प्रदान किया है कि ये क्षेत्र आवश्यक कानून की अनुपस्थिति में अभिशासन की शून्यता में मौजूद नहीं रह सकते हैं। राज्य सरकारें पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों के पंचायत क्षेत्रों को धीरे-धीरे नगरपालिका क्षेत्रों में परिवर्तित कर रही है या दूसरे शब्दों में कहा जाए तो नगर पालिकाओं के दायरे का विस्तार ग्रामीण क्षेत्रों में किया जा रहा है ताकि पेसा के तहत उपलब्ध संरक्षण और संवैधानिक अधिकार शिथिल किया जा सके। झारखंड सरकार भी कुछ नगरपालिकाओं और नगर निगम के क्षेत्रों का ग्रामीण इलाकों में विस्तार के प्रस्ताव पर विचार कर रही है।
21 सितंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश नगर निगम ऐक्ट 1956 से संबंधित एक मामले में फैसला सुनाया है जिसका वास्ता अनुसूचित क्षेत्र में नगर निकायों के गठन से है। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के एक फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जब तक राज्यपाल हस्तक्षेप नहीं करते हैं और किसी कानून को शिथिल या संशोधनों के साथ लागू करने का आदेश नहीं करते हैं तब तक सभी कानून अनुसूचित क्षेत्र में भी लागू होगा।
अपीलकर्ता कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत पंजीकृत एक कंपनी है और जमुना और कोटमा कोलियरी की कोयला खदानों का मालिक है। अपीलकर्ता ने नगर परिषद की सीमा के भीतर टर्मिनल टैक्स लगाने को चुनौती देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय का रुख किया। अपीलकर्ता ने पाँचवीं अनुसूचित जिले में मध्यप्रदेश नगर निगम ऐक्ट 1956 की वैधता को भी चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने माना कि नगर निगम को कर लगाने की शक्ति राज्य विधान सभा द्वारा उचित विधायी क्षमता के साथ अधिनियमित किया गया था। यह देखा गया कि संविधान के किसी भी प्रावधान के तहत नगर परिषद की शक्तियों के लिए कोई अपवाद अधिसूचित नहीं किया गया है।
वर्तमान मामले में उच्च न्यायालय ने पाया है कि अपीलकर्ता ने कोई अधिसूचना प्रस्तुत नहीं की, जिसमें यह दर्शाया गया हो कि विचाराधीन क़ानून मध्य प्रदेश राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों पर लागू नहीं होंगे या उनके प्रावधान अपवादों और संशोधनों के साथ लागू होंगे, जो नगरपालिका को कर लगाने की शक्ति को अक्षम करेंगे। इस न्यायालय के समक्ष भी ऐसी कोई अधिसूचना प्रस्तुत नहीं की गई है। पांचवीं अनुसूची का पैराग्राफ 5(1) राज्यपाल को यह निर्देश देने में सक्षम बनाता है कि राज्य या केंद्र का कानून राज्य के अनुसूचित क्षेत्र पर लागू नहीं होगा या यह अपवादों और संशोधनों के अधीन लागू होगा। इसलिए जब तक राज्यपाल द्वारा यह इंगित करते हुए अधिसूचना जारी नहीं की जाती है कि (I) संसद या राज्य कानून का अनुसूचित क्षेत्र पर कोई अनुप्रयोग नहीं होगा; या (ii) संसद या राज्य कानून अपवादों या संशोधनों के अधीन लागू होगा, राज्य में कानून के अनुप्रयोग में कोई बाधा नहीं होगी।
अनुच्छेद 243-जेडसी का प्रभाव यह है कि भाग IXA का अनुसूचित क्षेत्र पर कोई अनुप्रयोग नहीं है। अनुच्छेद 243X की अनुपयुक्तता राज्य विधायिका को राज्य के लिए कानून बनाने से वंचित नहीं करती है। संविधान के अनुच्छेद 244 द्वारा शासित एक अनुसूचित क्षेत्र पांचवीं अनुसूची में निहित प्रावधानों के अधीन है जो अनुसूचित क्षेत्रों या अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण को शासित करता है। पैराग्राफ 5 राज्यपाल को एक शक्ति प्रदान करता है, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है कि वह या तो निर्देश दे सकता है कि संसदीय या राज्य कानून अनुसूचित क्षेत्र में लागू नहीं होगा या यह ऐसे अपवादों या संशोधनों के अधीन लागू होगा, जैसा कि निर्दिष्ट किया जा सकता है। प्रस्तुत मामले में उच्च न्यायालय ने माना कि ऐसी कोई अधिसूचना पेश नहीं की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के निर्णय को सही माना है।
ऐसा ही एक मामला ओड़िसा के सुंदरगढ़ जिला का है। सुंदरगढ़ के आदिवासी एडवोकेट एसोसिएशन (एसजेडएएए) द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में दावा किया गया था कि सुंदरगढ़ संविधान की पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत अधिसूचित है, अत: यह अधिनियम यहां पर लागू नहीं होता है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने सुंदरगढ़ जिले को उड़ीसा नगर पालिका अधिनियम,1950 की परिधि से बाहर रखने संबंधी याचिका रद्द कर दी। मध्यप्रदेश के जबलपुर उच्च न्यायालय ने अनुसूचित क्षेर्तों में शहरी स्थानीय इकाइयों के चुनाव पर रोक लगा दी थी तथा केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह इस दिशा में एक कानून बनाए। बाद में उसे अपने निर्णय को रद्द करना पड़ा, क्योंकि न्यायालय का मानना था कि केंद्रीय कानून के अभाव में चुनाव प्रकिया को रोका नहीं जा सकता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक के साथ विषय के गहरे जानकार हैं)
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