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झारखंड के जमशेदपुर में जदयू विधायक व पूर्व मंत्री सरयू राय ने गुरुवार को कहा कि देश में असंगठित मजदूरों की संख्या बेतहाशा बढ़ रही है. इनमें ठेका मजदूर भी शामिल हैं. अब तो ऐसा समय आ गया है कि ठेकेदार ही मजदूरों के भाग्य विधाता बन गये हैं. मजदूरों को अब उनकी सेवा के बदले में सुरक्षा नहीं मिलती. उदारीकरण के बाद से ही असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की संख्या बढ़ रही है जबकि संगठित क्षेत्र के मजदूरों की संख्या निरंतर कम होती चली गई है. मजदूर दिवस के अवसर पर बिष्टुपुर में प्रदेश जदयू की ओर से आयोजित मजदूर सम्मान समारोह सह कार्यकर्ता सम्मेलन में वह बोल रहे थे.
सरयू राय ने कहा कि राज्य और केंद्र सरकार का रवैय़ा मजदूरों को लेकर बेहद खराब है. मजदूरों की सुनी नहीं जाती, जिन समस्याओं को कोई मजदूर यूनियन नहीं उठाता, उन समस्याओं को हमें उठाना चाहिए. न सिर्फ उठाना चाहिए बल्कि उनके लिए जोरदार संघर्ष भी करना चाहिए. उन्होंने कहा कि अब मजदूरों की परिभाषा भी बदल रही है. स्किल डेवलपमेंट भी अब मजदूरी की श्रेणी में है तो बौद्धिकता विकास भी अब मजदूरी की श्रेणी में आ गया है.
जमशेदपुर में मजदूरों की स्थिति चिंताजनक
सरयू राय ने कहा कि जमशेदपुर के फैक्ट्री मालिक थानों के खिलाफ नहीं जाते. एक तरीके से इनकी नैतिकता का पतन हो चुका है. कई कंपनियां ऐसी हैं, जिन्हें मुनाफे में कमी होती है तो वो उत्पादन ही बंद कर देती है. वहां कार्यरत मजदूरों के प्रति न तो उनकी कोई जिम्मेदारी समझ में आती है और न ही इंसानियत. आज के दौर में बहुत सी कंपनियां हैं, जो स्वयं मजदूर यूनियन का गठन करने लगी हैं. जब यूनियन कंपनी की गलत नीतियों के खिलाफ बोलने लगती है तब उनकी मान्यता को रद्द करवा दिया जाता है. संगठित मजदूरों को पीएफ, ईएसआई सहित अन्य लाभ मिलता है, परंतु असंगठित मजदूरों को किसी भी तरह की सामाजिक सुरक्षा नही मिलती है. हम सब को राजनीतिक दल के नाते प्रयास करना चाहिए कि जो श्रम अधिनियम मजदूरों के खिलाफ हैं, उसे बदलवाने का प्रयास करें.
एक वक्त आएगा, जब मजदूर नहीं मिलेंगे : खीरू महतो
कार्यक्रम में मौजूद राज्यसभा सांसद सह जनता दल (यूनाइटेड) के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष खीरू महतो ने कहा, ” असंगठित मजदूरों की देश में स्थिति बेहद खराब है. इनकी मजदूरी भी एकसमान नहीं है. आउटसोर्सिंग कंपनियों की भरमार के कारण इन मजदूरों की मजदूरी असमान हो गई है. ऐसे में अब वक्त आ गया है कि असंगठित मजदूरों की स्थिति में सुधार के लिए बड़ा आंदोलन किया जाए.” उन्होंने कहा कि राज्य हो या केंद्र की सरकार, मजदूरों की मजदूरी को एकसमान बनाने में किसी की कोई दिलचस्पी नहीं है. मनमाने तरीके से न्यूनतम मजदूरी तय कर दी जाती है. जिसके जो मन में आता है, तय कर देता है.
खीरू महतो ने कहा कि अब मजदूरों को जोड़ने की जरूरत है. मजदूरों का पैसा सरकारों के पास होता है लेकिन ये जानकारी के अभाव में उस पैसे को निकाल नहीं पाते. मजदूरों को शिक्षित करने की जरूरत है. जो स्थिति बन रही है, जिस तरीके से मजदूरों का शोषण हो रहा है, उससे तो यही प्रतीत होता है कि आने वाले वक्त में खोजने से भी मजदूर नहीं मिलेंगे. उन्होंने कहा कि असंगठित मजदूरों का आइडेंटिटी कार्ड जारी होना चाहिए, ताकि उनकी पहचान हो सके.