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झारखंड के हजारीबाग जिले में खासमहल भूमि से जुड़े घोटाले में एसीबी ने एफआईआर दर्ज कर ली है. एसीबी की इस कार्रवाई में तत्कालीन खास महल पदाधिकारी विनोद चंद्र झा समेत 7 लोगों को आरोपी बनाया गया है. इसके अलावा जमीन की खरीद-बिक्री में शामिल बसंती सेट्ठी, उमा सेट्ठी, इंद्रजीत सेट्ठी, राजेश सेट्ठी, विजय प्रताप सिंह व सुधीर कुमार सिंह को भी आरोपी बनाया गया है. एसीबी हजारीबाग में पदस्थापित डीएसपी सुमित सौरभ लकड़ा के बयान पर एजेंसी ने केस दर्ज किया है.
खासमहल घोटाले में साल 2015 में पीई दर्ज की गई थी. इस केस में गड़बड़ी पाए जाने के बाद एसीबी ने सरकार से एफआईआर दर्ज करने की अनुमति मांगी थी. ये घोटाला तत्कालीन हजारीबाग डीसी व फिलहाल शराब घोटाले में जेल में बंद निलंबित आईएएस अधिकारी विनय कुमार चौबे के कार्यकाल से जुड़ा रहा था. पूरा मामला हजारीबाग की 2.75 एकड़ खासमहल भूमि से संबंधित है.
बताया जा रहा है कि 1948 में 2.75 एकड़ खासमहल भूमि को 30 वर्षों के लिए सेवायत ट्रस्ट को लीज पर दिया गया था. खासमहल जमीन की लीज 1978 में समाप्त हो गई थी और 2008 तक इसका नवीकरण किया गया. लेकिन 2008-10 के बीच एक सुनियोजित प्रशासनिक से षड्यंत्र के तहत इस भूमि को सरकारी भूमि घोषित कर 23 निजी व्यक्तियों को आवंटित कर दिया गया. आरोप है कि इसमें तत्कालीन डीसी विनय कुमार चौबे की भी भूमिका थी.
तत्कालीन डीसी ने खासमहल पदाधिकारी विनोद चंद्र झा के साथ मिलकर लीज नवीनीकरण के लिए दिए गए आवेदन से सेवायत शब्द जानबूझकर हटवाया, ऐसा इसलिए किया गया, ताकि ट्रस्ट भूमि को सरकारी दिखाया जा सके और उसका अवैध रूप से हस्तांतरण संभव हो सके. ट्रस्ट की इस संपत्ति को निजी लाभ के लिए बेचने के लिए फर्जी तरीके से पॉवर ऑफ अटॉर्नी का इस्तेमाल किया गया.
विजय प्रताप सिंह और सुधीर कुमार सिंह नामक व्यक्तियों को पावर ऑफ अटॉर्नी धारक बनाया गया, जिनके माध्यम से यह पूरी प्रक्रिया न केवल न्यायालय की अवहेलना थी, बल्कि ट्रस्ट की संपत्ति का निजी दोहन कर उसे व्यावसायिक लाभ में बदलने की एक सुनियोजित साजिश थी.
इस मामले में झारखंड उच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना की बात भी एसीबी ने पायी थी. उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि हीरालाल सेठी और पन्नालाल सेठी अथवा उनके उत्तराधिकारी ट्रस्ट की भूमि को किसी अन्य को हस्तांतरित नहीं कर सकते. इसके बावजूद, इस आदेश को नजरअंदाज करते हुए राजस्व विभाग के आदेश संख्या 1346/रा (15 मई 2010) और डीसी आदेश संख्या 529/खाम (14 सितंबर 2010) के माध्यम से इस भूमि को 23 व्यक्तियों को आवंटित कर दिया गया. वर्तमान में इस भूमि पर बहुमंजिला व्यावसायिक भवन खड़े हैं.