रवींद्र पांडेय
मैं भी उसी देश का वासी हूं जिस देश में गंगा बहती है। यह बहती गंगा डंके की चोट पर बड़े से बड़ा पाप एक ही डूबकी में धो डालती है। पाप की महिमा तो सभी जानते हैं। मानव के लिए मोक्ष जितना जरूरी है, पाप उससे तनिक भी कम जरूरी नहीं। बगैर पाप के जिन्दगी की गाड़ी चल ही नहीं सकती।
जिन्दगी की गाड़ी तो बहुत बड़ी होती है, मुहल्ले के लाला की छोटी दुकान तक बगैर पाप के नहीं चल पाती। लाला छुपाकर पाप नहीं करते। स्पष्ट शब्दों में कहते हैं, “माल में मिलावट है, तौल गलत है, दाम भी गैर वाजिब है, लेना है लो, वर्ना आगे जाओ।” मुहल्लेवाले जानते हैं, आगे और बड़ा लाला बैठा है। वे सोचते हैं, खरीदना जब किसी लाला से ही है, तो क्यों न पड़ोस के लाला से ही खरीदें।
लाला उधारी भी देते हैं। कहते हैं, “भगवान ने दिया है तभी देता हूं।” भगवान लाला से मिला हुआ है। मिलना उसकी लाचारी है। वह लाला के स्व. पिता के बनवाये भव्य मन्दिर में गुजारा जो करता है। उसके छप्पन भोग का इंतजाम भी लाला ही करते हैं। भगवान को अपना गुणगान सुनना बड़ा प्रिय लगता है। लाला साल में कई दफे हरिकीर्तन कराते हैं। यज्ञ भी कराते हैं। भगवान का पूरा ख्याल रखते हैं लाला। ऐसे में भगवान लाला का खयाल क्यों न रखे।
मुहल्लेवाले लाला को अकसर कोसते रहते हैं- बेईमान है। बहुत पाप करता है। आज नहीं, तो कल उसके पाप का घड़ा भरेगा, तब उसके शरीर में पिल्लू पड़ेंगे। नरक जायेगा।
मैं लाला के लिए चिंतित होता हूं। लाला मुझे प्रिय हैं। ठगते हैं तो चाय भी पिलाते हैं। चाय पिलाकर कोई ठगे तो खुद पर गर्व होता है। इज्जत के साथ ठगाना-ठगाना नहीं। कुछ अर्थों में ठगने जैसा है। एक दिन लाला से मैंने पूछा, “आपका पाप का घड़ा कब भरेगा? आपके शरीर में पिल्लू पड़ने की उम्मीद कब तक रखूं? आपका नरक जाना तो तय ही है।”
मेरी बातें सुन लाला मुस्कुराये और सादर दुकान के अंदर ले गये। बोले, “देखिए, यह है मेरे पाप का घड़ा। यह कभी नहीं भरेगा। जरा इसके पेंदे में गौर कीजिए। देख रहे हैं, इसमें कितने पाइप लगे हैं। मैं जितना पाप घड़े में भरता हूं सब इन पाइपों से पाप के अन्य घड़ों में पहुंच जाता है। मेरे घड़े से अधिकाधिक पाप खींचने के लिए खिंचनेवालों ने मोटर पंप लगा रहे हैं। पाप की जितनी डिमांड घड़े को है, मैं पूरी नहीं कर पाता। हालांकि मैं पूरी निष्ठा से रोज इसमें पाप भरता हूं।”
मैंने लाला से पूछा कि इन पाइपों से पाप जाता कहां है तो लाला बोले, “कुछ तो इंस्पेक्टरों के यहां, जैसे सेल टैक्स इंस्पेक्टर, इन्कम टैक्स इंस्पेक्टर, माप-तौल इंस्पेक्टर, पुलिस इंस्पेक्टर वगैरह। एक मुहल्ले के दादा के यहां, एक इलाके के परदादा के यहां। परदादा समझते हैं न। वह दादा जो मंच पर दिखने लगा हो। और एक पाइप राम-जानकी मन्दिर से जुड़ा है। भला बतायें, क्या घड़ा ऐसे में कभी भर सकता है ?
“आप नहीं जानते, देश भर के पाप के घड़े पाइपों के जरिये एक-दूसरे से जुड़े हैं। इसलिए किसी का घड़ा भरनेवाला नहीं। किसी को पिल्लू नहीं पड़ेंगे और जहां तक नरक जाने की बात है, कोई नरक नहीं जायेगा, आखिर इस देश में गंगा काहे के लिए बहती है?”
(लेखक पत्रकार और लेखक हैं। व्यंग्य में महारत। एक पुस्तक भी प्रकाशित। सम्प्रति खैरागढ़ में रहकर स्वतंत्र लेखन। )