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बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों में तेज होती सियासी चर्चाओं के बीच सोमवार को केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात की. इस मुलाकात के दौरान मंत्री व जदयू नेता विजय कुमार चौधरी, लोजपा सांसद अरूण भारती भी मौजूद रहे. चिराग पासवान और नीतीश कुमार में सुबह सुबह मुलाकात से सियासी हलचल तेज है. पिछले दिनों चिराग पासवान को मुख्यमंत्री बनाने की मांग से संबंधित एक पोस्टर के बाद जदयू ने सीएम पद को लेकर नीतीश कुमार की दावेदारी को दोहराया था.
इस मुलाकात को काफी अहम माना जा रहा है, क्योंकि एक तरफ चिराग पासवान केंद्र की राजनीति के बजाय बिहार की सेवा करने की बात कर रहे हैं और चिराग के समर्थक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से उन्हें अब बिहार की जिम्मेवारी देने की अपील कर रहे हैं तो वहीं चिराग पासवान सार्वजनिक रूप से नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री पद का दावेदार बताते हैं, पर परोक्ष रूप से इस तरह का बयान दे रहे हैं, जो जेडीयू और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए असहज करने वाली है. JDU को 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग के रणनीति दुहराने की आशंका सताने लगती है. इसलिए चिराग पासवान ने आज मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात काफी अहम है.
विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी लोजपा(ऱा)
चिराग पासवान की पार्टी लोजपा(रा) बिहार चुनाव की तैयारियों में जमीनी तौर पर जुट गई है. पार्टी नेताओं का कहना है कि एनडीए में रहते हुए भी वह अपनी स्वतंत्र पहचान के साथ भागीदारी निभाएगी. चिराग पासवान की पार्टी प्रदेश के सभी जिलों में बहुजन भीम संवाद कार्यक्रम का भी आयोजन करेगी. इसके जरिए चिराग अपनी पार्टी को और मजबूत करने की तैयारी में हैं. चिराग पासवान का यह फैसला कहीं ना कहीं बीजेपी की परेशानी बढ़ाने वाली लग रही है. राजनीतिक जानकारों की मानें तो चिराग इसके माध्यम से एनडीए में शामिल दलों को अपनी ताकत दिखाना चाहते हैं, ताकि जब 243 सीटों पर बंटवारा हो तो उनकी पार्टी मजबूत दिखे.
भीम संवाद को लेकर बढ़ी परेशानी
सूत्रों की माने तो ये संवाद कार्यक्रम चिराग पासवान के लिए आगामी विधानसभा चुनावों से पहले शक्ति प्रदर्शन का मंच बनेंगे. इसके जरिए लोजपा-आर न सिर्फ दलित और पिछड़े वर्गों में अपनी पैठ मजबूत करना चाहती है, बल्कि भाजपा और जेडीयू को भी यह संकेत देना चाहती है कि सीट बंटवारे में उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. चिराग पासवान ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उनकी पार्टी एनडीए का हिस्सा रहेगी, लेकिन वह गठबंधन के भीतर अपनी स्वतंत्र पहचान बनाए रखेगी. लोजपा-आर की इस रणनीति को एनडीए के भीतर “सॉफ्ट दबाव राजनीति” के रूप में देखा जा रहा है.