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बोकारो के पूर्व भाजपा विधायक विरंची नारायण ने मंगलवार को राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार से मुलाकात कर उन्हें बोकारो विधायक श्वेता सिंह के खिलाफ नए आरोपों के आधार पर तत्काल विधायकी रद्द करने की मांग की. इससे पहले सोमवार को बोकारो के पूर्व विधायक ने मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के. रवि कुमार को भी इस मामले में ज्ञापन सौंपा था.
ज्ञापन में बिरंची नारायण ने इस बात का उल्लेख किया कि विधायक श्वेता सिंह ने विधानसभा चुनाव 2024 के दौरान अपने शपथ पत्र पर नामांकन पत्र फॉर्म 26 में गलत सूचना दी है और कई जरूरी सूचनाएं छुपाई है, जिसके कारण उनकी सदस्यता रद्द हो जानी चाहिए. राज्यपाल से मुलाकात के दौरान भाजपा के राज्यसभा सांसद आदित्य साहू और पूर्व विधायक भानु प्रताप शाही भी मौजूद थे.
विरंची नारायण के नए आरोप
विरंची नारायण ने सौंपे ज्ञापन में नए आरोपों का भी जिक्र किया, जिसमें श्वेता सिंह ने अपने शपथ पत्र में बैंक से लिये गये 79,344 रुपये के कन्ज्यूमर लोन का भी उल्लेख नहीं किया है. साथ ही यूनियन बैंक के ऑटो लोन के 28 लाख रुपये का भी उल्लेख नहीं किया. इस प्रकार उन्होंने अपने ऋण की जानकारी छिपाई, जो द रिप्रेजेन्टेशन ऑफ द पिपुल एक्ट, 1951 के सेक्शन 33 ए के तहत एक गंभीर चूक है. इसके अलावा श्वेता सिंह ने अपने पति संग्राम सिंह के बैंक लोन से संबंधित जानकारी भी चुनावी हलफनामें में नहीं दी है. वहीं संग्राम सिंह के पैतृक संपत्ति का भी उल्लेख श्वेता सिंह ने अपने शपथ पत्र में नहीं किया है.
विरंची नारायण ने राज्यपाल से अनुरोध किया कि इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए बोकारो की कांग्रेस विधायक क्षेता सिंह की झारखण्ड विधानसभा की सदस्यता रद्द की जाय क्योंकि द रिप्रेजेन्टेशन ऑफ द पीपुल एक्ट, 1951 के सेक्शन 125 ए के तहत श्वेता सिंह ने गलत शपथ पत्र दिया है. जिसमें उनके द्वारा फाल्स एफिडिविट देने पर दंड का भी प्रावधान है.
इससे पहले विरंची नारायण ने श्वेता सिंह के पास चार वोटर आईडी कार्ड व दो पैन कार्ड होने का भी दावा किया था. इन दोनों पैन कार्डों में पिता के नाम अलग-अलग बताये गये हैं तो वहीं दो-दो सरकारी क्वार्टर श्वेता सिंह के नाम से आवंटित है और इन दोनों सरकारी क्वार्टर का किराया बकाया होने की बात छुपाई गई. इसके संदर्भ में उन्होंने नो डयूज सर्टिफिकेट नहीं संलग्न किया. यह एक गंभीर प्रकृति का अपराध है और इस संदर्भ में भारत का संविधान का अनुच्छेद 191(1), 191(1) (३) और अनुच्छेद-192 के तहत यह मामला लाभ का पद का मामला बनता है और इस संवैधानिक उपबंध के तहत इनकी सदस्यता रद्द किये जाने का स्पष्ट प्रावधान है.