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वक़्फ़ (संशोधन) एक्ट, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई में बुधवार को केंद्र सरकार ने कोर्ट से कहा कि वक़्फ़ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना जायज़ है. केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच के सामने यह दलील पेश की. तुषार मेहता ने कहा, “वक़्फ़ एक इस्लामी अवधारणा है, लेकिन यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है.”
तुषार मेहता ने तर्क दिया, “वक़्फ़ बोर्ड के काम देखें- वक़्फ़ संपत्तियों का प्रबंधन, (यह सुनिश्चित करना कि) लेखा-जोखा सही से हो, खातों का ऑडिट करना- इन सभी कामों का धर्म से कोई संबंध नहीं है. अधिकतम दो गैर-मुस्लिम सदस्य होने से – क्या इससे कुछ बदल जाएगा?”
वक़्फ़ एक्ट के ख़िलाफ़ याचिका दायर करने वालों की ओर से एक तर्क ये दिया गया है कि हिंदू बंदोबस्ती बोर्ड में गैर-हिंदुओं को नहीं रखा जाता है, तो वक़्फ़ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को रखने की मंज़ूरी देकर मुसलमानों के साथ भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए. इस तर्क के जवाब में तुषार मेहता ने कहा कि ‘हिंदू बंदोबस्ती केवल धार्मिक गतिविधियों से संबंधित है, जबकि वक़्फ़ धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों से संबंधित है’. इस मामले की सुनवाई गुरूवार को भी जारी रहेगी.