राकेश कायस्थ
समाजशास्त्री आशीष नंदी ने एक बार कहा था कि मौजूदा हुकूमत ने इस देश की मूल संरचना को इतना नुकसान पहुंचाया है कि आनेवाली दो पीढ़ियां रात-दिन काम करेगी, तब जाकर उसकी भरपाई हो पाएगी।भारत में जितने भी इंस्टीट्यूशन हैं, उनके काम करने के तरीके को लेकर 2014 से पहले भी सवाल थे। हम में से ज्यादातर लोग पहले भी बहुत खुश नहीं थे। लेकिन 2014 की बुद्धि विरोधी महाक्रांति ने जो कुछ बचा था, वह भी निगल लिया। श्वेत वर्चस्व वाले अमेरिका के रिपब्लिक वोटर की तरफ हिकारत के भाव से देखते हुए कहा जाता है कि भारत अकेला नहीं है। दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र का भी यही हाल है। लेकिन एक फर्क है। भारत से 36 गुना प्रति व्यक्ति आय वाला अमेरिका मूर्खता का तूफान कुछ समय के लिए झेल सकता है। जिस देश की अस्सी प्रतिशत आबादी पांच किलो मुफ्त के राशन पर पलती हो वह देश नहीं।

लोकतंत्र को बचाये रखना बहुत जिम्मेदारी का काम
दूसरी बात ये है कि उदासीन होकर भी अमेरिकन वोटर उतना मूर्ख नहीं है। ट्रंप की 100 day Approval Rating ऐतिहासिक रूप से सबसे निचले स्तर पर है। यानी अमेरिकी वोटर मान रहा है,उससे गलती हो गई।दूसरी तरफ भारत की कहानी विचित्र है। यहां दुनिया का एकमात्र ऐसा वोटर समूह मौजूद है, जो अपने नेता के निकम्मेपन को सेलिब्रेट करता है। वह इस बात के लिए बकायदा कैंपेन करता है, एक निर्वाचित प्रधानमंत्री से सवाल ना पूछे जायें। ये विशाल आबादी रातो-रात प्रकट नहीं हुई है। विफलता उसी सिस्टम की है, जिसका हिस्सा हम सब है। लोकतंत्र को बचाये रखना बहुत जिम्मेदारी का काम है। स्वीकार करना होगा कि बतौर नागरिक हमने भी अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाई है।

भारत की बहुलवादी संरचना है, प्रतिनिधित्व है,
जातिगत जनगणना सिर्फ इस देश में मौजूद जातियां गिन लेने का मामला नहीं है। इसके केंद्र में भारत की बहुलवादी संरचना है, प्रतिनिधित्व है, न्याय है और एकाउंटिबिलिटी भी। कुल मिलाकर संविधान का सार तत्व इस एक चीज में समाहित है। जो लोग राहुल गांधी का मजाक उड़ा रहे थे कि लाल किताब दिखाने से क्या होगा, उन्हें जवाब मिल गया होगा। इस देश की मूल समस्या यह है कि सरकारों ने अब तक ठीक से संविधान लागू ही नहीं किया। जातिगत जनगणना का पिटारा खुला तो उसके साथ ये सारे सवाल भी बाहर आ गये। कोई लाख कोशिश करे, अब इन्हें दफन नहीं कर सकता। तमाम सवालो को पकड़े रखिये। भारत ने अपनी आज़ादी प्रगतिशील और महान जीवन मूल्यों पर चलकर हासिल की है। नेहरू ने जिस लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव डाली थी, वह कमजोर होकर भी इतनी मजबूत है कि कोई दंगाई उसे जड़ से नहीं उखाड़ सकता है। जागितत जनगणना का मुद्दा पकड़कर रखिये, यकीनन हालात बदलेंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। रामभक्त रंगबाज़ उनकी चर्चित पुस्तक है।)
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