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अस्सी सालों से जो ग्रामीण अपनी जमीन पर खेती-बाड़ी करते आ रहें है, जिनके पास उनकी जमीनों के कागजात है, 1932 का खातियान होते हुए भी उन्हें उनकी जमीन से हटाने की कोशिश की जा रही है. अब बीआईटी मेसरा का कहना है कि ये सारा जमीन हमारे कैम्पस का है और अब हम इसका घेराबंदी करेंगे और यह हमारी जमीन है. 780 एकड़ जामीन हमारी है जो हमने 1955 में खरीदी थी. इस तरह की बातें बोलकर और प्रशासन के बल पर जमीन हड़पना चाहते हैं.
अब यह मामला तूल पकड़ता जा रहा है. ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें उनकी जमीनों से हटाने की कोशिश की जा रही है. उनका कहना है कि हमारे दादा-परदादा की जमीन है और हमारा जीवन-यापन इसी जमीन में खेती कर के होता है. इस मामले का जायजा लेने जी.रोड.लाइव की रिपोर्टर पल्लवी कुमारी ने लिया.
ग्रामीणों ने कहा 1955 की जमीन, दिखा रहे 2005 का पेपर
हमारी रिपोटर से वहां के ग्रामीणों ने बात करते हुए बताया कि बीआईटी मेसरा हमारी जमीन को हड़पना चाहते हैं. हमारी पुरखों की जमीन पर कब्जा जताना चाहते है. न ही उनके पास जमीन का कोई कागजात है और न ही कोइ रसीद . बीआईटी मेसरा अपने प्रशासन के बल पर हमें डरा-धमका कर हमारी जमीन की घेराबंदी करना चाहते हैं.
ग्रामीण महिलाओं का कहना है कि हमारी खेती को बर्बाद कर देते है. जो भी फसल हम लगाते हैं तो उन पर वो नमक डालकर बर्बाद कर देते है, हम पर चोरी करने का आरोप लगाते है. ग्रामीणों का कहना है कि जब वो दावा कर रहें हैं कि 1955 में जब जमीन ली है तो उस समय की रसीद दिखाए लेकिन वो तो 2005 का पेपर दे रहें हैं.
ग्रामीणों का कहना है कि हम चाहते है कि इस मामले को बीआईटी मेसरा सामने आकर बैठकर बातकर के हल निकाले लेकिन वो सामने आने के लिए तैयार नहीं है. अगर वो सामने आ कर बात करें नहीं तो हम आन्दोलन करेंगे. न तो हम जमीन देंगे और न ही जान देंगे. अगर दूध मांगे तो हम खीर देंगें, और अगर जमीन मांगे तो चीर देंगे.
ग्रामीणों की मांग जायज, इनके साथ : संजय सेठ
वहीँ मौके पर ग्रामीणों से मिलने पहुंचे केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री व रांची सांसद संजय सेठ ने कहा कि ग्रामीणों की मांग बिलकुल जायज है. इनके पास सारे जमीन के कागजात है. मैंने इनका सारा पेपर देखा है और सही भी है. अगर बीआईटी मेसरा के पास अपने जमीन का पेपर है तो सामने लाये. ग्रामीणों की मांग जायज है और मै ग्रामीणों के साथ हूँ. जो भी कानूनी करवाई है मैं इनके साथ हूँ.