विनोद कुमार
नौकरी की मांग को लेकर आंदोलनरत एपरेंटिस संघ के एक युवक की सीआईएसएफ लाठीचार्ज में दर्दनाक मौत हो गयी. खबर आ रही है कि बोकारो स्टील प्रबंधन के एक उच्चाधिकारी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है और एपरेंटिस संघ की सभी मांगों को बोकारो स्टील प्रबंधन ने मान लिया है. फिर भी आज बोकारो में बंदी है और सर्वत्र सन्नाटा है. आंदोलन ने बाहरी भीतरी का रूप ले लिया है. आपको बता दें कि बोकारो के आस पास के कुछ इलाकों में आदिवासी गांव भी हैं, लेकिन मूलतः यह कुर्मी बहुल क्षेत्र है.
आंदोलनकारियों की तमाम मांग मान ली गयी
यह सही है कि डीसी के हस्तक्षेप से तत्काल आंदोलनकारियों की तमाम मांग मान ली गयी है. स्थिति को शांत करने के लिए यही रणनीति अपनायी जाती है. लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि बोकारो स्टील ज्यादा लोगों को नौकरी नहीं दे सकती. ऐसी कोई कानूनी बाध्यता नहीं. पहले चतुर्थ ग्रेड में स्थानीय लोगों/ विस्थापितों की नौकरी की गारंटी रहती थी. लेकिन 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कह दिया कि बोकारो स्टील एक राष्ट्रीय संपत्ति है, इसलिए यहां सभी को नौकरी मिलनी दी जानी चाहिए. किसी के लिए कोई आरक्षण नहीं. उसके बाद से विस्थापितों की बहाली बंद है.एपरेंटिस संघ तो आंदोलन इसलिए कर रहा है कि बोकारो प्रबंधन ने एपरेंटिसशिप योजना के तहत करीबन 1500 विस्थापित युवकों को प्रशिक्षण दिया, लेकिन उन्हें नौकरी नहीं दी. उनका कहना है कि उनका काम प्रशिक्षण देना था, नौकरी देने की जिम्मेदारी उनकी नहीं. और संघ इसी के लिए आंदोलन कर रहा था.
उत्पादन क्षमता में तो वृद्धि हुई लेकिन कम होता जा रहा रोजगार
दरअसल समस्या यह है कि बोकारो स्टील में उत्पादन क्षमता में तो वृद्धि हुई है, लेकिन रोजगार कम होता जा रहा है. जब कारखाना 2.5 मिलियन टन का उत्पादन करता था तो वहां 50 हजार नियमित कर्मचारी काम करते थे. लेकिन अब जब कारखाना 4.5 मिलियन टन का उत्पादन कर रहा है तो रोजगार वहां सिर्फ 5000 कर्मचारियों और 1500 अधिकारियों यानी कुल 6500 के करीब लोगों को मिला है. शेष काम ठेका श्रमिक कर रहे हैं. तो, इन विसंगतियों और बदलती जा रही परिस्थितियों के खिलाफ कभी संगठित आंदोलन किसी ने करने की जरूरत नहीं समझी, बस रोजगार के लिए सतत आंदोलन चलता रहता है. कारखाना को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर आरक्षण का प्रावधान खत्म कर दिया गया और केद्र व राज्य सरकार मुंह देखती रही. इसलिए भले ही तत्काल युवक की मौत से उपजी परिस्थितियों में कुछ लोगों को रोजगार मिल जाये, लेकिन बोकारो कारखाना रोजगार सृजन की दृष्टि से बंजर बना दिया गया है.
बोकारो और कोयलांचल की राजनीति को समझना होगा
फिर इस तरह का आंदोलन किसलिए जिससे कुछ निकलने वाला नहीं, तो इसे समझने के लिए बोकारो और कोयलांचल की राजनीति को समझना होगा. बोकारो में दशकों तक अकलूराम महतो और समरेश सिंह के बीच संधर्ष होता रहा. कभी अकलू विधायक बनते और कभी समरेश. इनका दौर खत्म हुआ तो एक दो टर्म अलग लोग विधायक बने और अब समरेश सिंह की बहु कांग्रेस के टिकट पर विधायक बन गयी हैं. दूसरी तरफ धनवाद संसदीय सीट पर किसी जमाने में एके राय का वर्चस्व था और आज ढ़ुलू महतो सांसद हैं. बोकारो धनबाद संसदीय क्षेत्र में ही आता है. इसके अलावा जयराम की पार्टी की भी दखलअंदाजी है.
SC ने BSP को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर आरक्षण खत्म कर दिया
और इस बीच बोकारो कारखाना में 21000 करोड़ का आधुनिकीकरण होने जा रहा है. 16000 करोड़ से कारखाना में और 5000 करोड़ से उसके कैप्टिव खदानों में. आज कल तो काम ठेकेदार ही करते हैं. बड़े ठेकेदार, उसके नीचे छोटे ठेकेदार और ठेकेदारों को प्रभावित करने के लिए विभिन्न गुटों का शक्ति प्रदर्शन जरूरी है. रोजगार के लिए व्याकुल विस्थापित युवक अपने प्राणों की आहूति देने के लिए तो हैं ही. वरना दो काम करें नेता,सुप्रिम कोर्ट ने बोकारो स्टील प्लांट (BSP) राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर जो विस्थापितों का आरक्षण खत्म कर दिया, उसे समाप्त करने की जुगत करे. दूसरे, स्थाई प्रकृति के तमाम काम में नियमित रोजगार की बहाली के लिए बोकारो स्टील प्रबंधन पर दबाव बनाये. यदि कारखाना रोजगार न दे तो रहे क्यों?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व लेखक हैं। अबतक कई किताबें प्रकाशित। )
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। G.T. Road Live का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।