प्रेमकुमार मणि
मेरे सामने इंडियन एक्सप्रेस अख़बार पसरा है और इसकी मुख्य खबर मुर्शिदाबाद को लेकर है. 24 वर्षीया सप्तमी मंडल की पीड़ा कि हम अपने ही देस में शरणार्थी हो गए, किसी को भी विचलित कर सकती है. वक़्फ़ कानून को लेकर वहाँ कई रोज से हिंसा जारी है और लोग भाग रहे हैं. कौन भाग रहे हैं? गरीब और पिछड़ी जात के हिन्दू. इन गरीबों ने मर्जी से मजहब का चुनाव नहीं किया था. हाँ, अपनी परंपरा पर बने रहना जरूर चाहते होंगे. उनका वक़्फ़ कानून और सियासत से क्या वास्ता. लेकिन कहावत है खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे. वहाँ के कट्टर मुसलमानों को लग रहा होगा कि इससे उनकी मांग को बल मिलेगा. मानो बिल की वापसी से मुसलमानों को जन्नत मिल जाएगा.

मुर्शिदाबाद पश्चिम बंगाल प्रान्त का एक शहर है, और जिला भी. यह कभी बंगाल की राजधानी हुआ करता था. यहीं अलवर्दी खान और उसके नाती सिराजुदौला ने राज किया था. ईस्ट इंडिया कंपनी ने यहीं से भारत की राजनीति में प्रवेश किया था. जिले की धार्मिक आबादी में मुसलमान 75 फीसद हैं. हिन्दुओं में 99 फीसद से अधिक दलित और पिछड़ी जाति के लोग हैं. सप्तमी मंडल और उनकी जमात की पीड़ा पर गंगा-जमुनी और साझा संस्कृति के झंडाबरदार चुप हैं. गोधरा की हिंसा पर धरना प्रदर्शन करने वाले चुप हैं. अल्पसंख्यक राजनीति के फलसफे लिखने वाले चुप हैं. मुर्शिदाबाद की डेमोग्राफी में ये गरीब केवल हिन्दू होने के कारण बहुसंख्यक आबादी द्वारा प्रताड़ित किए जा रहे हैं, यह उन्हें नहीं दिख रहा है. क्या सचमुच सप्तमी मंडल और उनकी गोद के बच्चे को वक़्फ़ कानून की कोई जानकारी है ? ये कौन लोग हैं जो इन्हें मार रहे हैं?

जितना मज़हबी तनाव होगा भाजपा को उतना लाभ होगा
सब जानते हैं कि इस से किसे फायदा होगा. जितना अधिक मजहबी तनाव होगा भाजपा को वोट का लाभ होगा. इसलिए उसकी चुप्पी तो समझी जा सकती है. लेकिन तथाकथित सेकुलर फ्रंट के लोग चुप क्यों हैं ? सप्तमी मंडल के पुरखे कभी पूर्वी बंगाल से भारत आए होंगे. अपने देस. मजहब के आधार पर इंडिया बंट गया था. मुसलमानों ने पाकिस्तान हासिल कर लिया. शेष हिस्से ने हिंदुस्तान नहीं, भारत के रूप में अपनी पहचान बनाई. हलाकि बंटवारा तो मजहब के नाम पर हुआ था. मुसलमानों को उनकी आबादी से अधिक की हिस्सेदारी मिल गई थी. अंग्रेजों ने अपने जानते हिन्दू राष्ट्र बना ही दिया था. लेकिन राष्ट्रीय आंदोलन के नेताओं ने तय किया कि हम अपने उन सिद्धांतों को छोड़ेंगे नहीं, जिन्हे लेकर राष्ट्र निर्माण का संघर्ष शुरू किया था. भारत का निर्माण मजहब या धर्म के आधार पर नहीं, धर्मनिरपेक्षता के आधुनिक विचारों के आधार पर होगा. जो मुसलमान यहां से भाग रहे थे, उसे हमारे पुरखों ने रोका. मत जाओ यह देस तुम्हारा भी है. हम ऐसे भारत का निर्माण कर रहे हैं जहाँ सब को विकास के समान अवसर मिलेंगे. कोई जोर-जबरदस्ती किसी पर नहीं होगी. तंगख़याली हिन्दुओं के भी एक तबके में थी. उसी में से एक ने गांधी को गोली मार दी. नेहरू तो आज भी गालियां खा रहे हैं. लेकिन उनके विचारों के साये में जो संविधान बना उस ने सब को आश्वस्त किया.

किसी बिल में कोई चूक हो तो जरूर सुधारा जाना चाहिए
अब अवसर था हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई जो विभिन्न ख्यालों के लोग थे, वे अपने मज़हबी ख्याल से थोड़ा आगे बढ़ कर भारतीय बनें. समान नागरिक कानून और समझदारी के साथ जीवन जिएं. लेकिन कुछ लोगों की जिद थी नहीं, हम नहीं बदलेंगे, दूसरे बदल जाएं. लेकिन यह कैसे चलेगा. हिन्दुओं को भी बदलना होगा मुसलमानों को भी. यदि नहीं बदले तो तनाव होंगे. यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा. मेरा आग्रह होगा लोग अपना विवेक जाग्रत करें. सब लोग पहले भारतीय बनें. वक़्फ़ बिल संसद ने पास कर दिया है और राष्ट्रपति ने इसे अनुमति दे दी है. अब लोग सर्वोच्च कचहरी में गए हैं. इसी कचहरी ने जब शाहबानो पर फैसला दिया था तब सरकार और संसद के सामने गुहार लगाई गई थी. इस अंतर्विरोध पर मुस्लिम नेताओं ने कुछ सोचा है ? कोई भी चीज पूर्ण नहीं होता. यदि किसी बिल में कोई चूक हो तो जरूर सुधारा जाना चाहिए. लेकिन मजहबी नेताओं की इस जिद में कोई दम नहीं है कि उनकी मुस्लिम पहचान खंडित न हो. उनका यह भी कहना है कि इसमें गैर मुस्लिम मेंबर की भी गुंजायश है.

दलितों की चिंता करें जो अपने ही मुल्क में शरणार्थी बनने के लिए मजबूर
अखिलेश यादव के शासनकाल में जब एक मुसलमान मंत्री आजम खान को संगम मेले का इंचार्ज बनाया गया था तब तो कोई हंगामा नहीं हुआ था. गंगा-जमुनी और साझा संस्कृति का फलसफा देने वाले लोग भी जब इस वक़्फ़ बिल से रंज हैं तब इसका मतलब है तथाकथित सेकुलर लोगों में भी नए तरह की तंगख़याली घर कर गई है. तो, पहले मुर्शिदाबाद के दलितों की चिंता करें जो अपने ही मुल्क में शरणार्थी बनने के लिए मजबूर हो रहे हैं. देश में अमन चैन बहाल हो. हर विवाद को बातचीत और न्यायिक प्रक्रिया द्वारा हल किया जाना चाहिए. भारत को भारत रहना है. अब इसे हिन्दू या मुस्लिम राष्ट्र नहीं बनाना है. इसी में सब की भलाई है. हर तरह के मजहबी कट्टरपन के खिलाफ हमें अपनी आवाज बुलंद करनी ही चाहिए.
(लेखक वरिष्ठ राजनेता हैं। कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे। कुछ किताबें प्रकाशित । सम्प्रति स्वतंत्र लेखन । )
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। G.T. Road Live का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।
Who wants to take political benefits on