केपी मलिक
संघ भाजपा की वैचारिक जननी माना जाता है। संघ राजनीति नहीं करता, लेकिन राजनीतिक दिशा ज़रूर तय करता है। ऐसे में जब संघ कुछ नेताओं को “पार्टी की आत्मा” कहे, तो उसका मतलब सिर्फ प्रशंसा नहीं, बल्कि एक स्पष्ट संदेश होता है! संघ ने उन चेहरों को आगे लाने की ठानी है जिनको पिछले एक दशक से नज़रअंदाज़ किया गया था संघ का मानना है कि ख़ासतौर पर ये तीन चेहरे भाजपा के मूल विचार और संगठन संस्कृति के प्रतीक हैं।
तीन चेहरे और तीन संकेत
1. संजय जोशी : संगठन के मजबूत स्तंभ माने जाते हैं। ज़मीनी कार्यकर्ताओं में जबरदस्त पकड़, लेकिन नरेंद्र मोदी के उभार के बाद हाशिये पर चले गए। संघ आज भी उन्हें संगठन शुचिता का प्रतीक मानता है।
2. नितिन गडकरी : स्पष्ट वक्ता, संघ पृष्ठभूमि से संबंधित और मोदी कैबिनेट के सबसे परफॉर्मेंस-ओरिएंटेड माने जाने वाले मंत्री। परन्तु 2024 के बाद उन्हें केंद्र में कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं मिली। संघ और कई वरिष्ठ नेता उन्हें ‘आर्थिक राष्ट्रवाद’ और ‘विकास-प्रधान राजनीति’ का चेहरा मानते हैं।
3. वसुंधरा राजे : राजपूत-जाट राजनीति की मजबूत खिलाड़ी और राजस्थान में आज भी बड़े वर्ग में जनाधार रखने वाली मज़बूत नेत्री। हालांकि पार्टी हाईकमान उन्हें बार-बार दरकिनार करता रहा है। संघ का मानना है कि उन्हें उपेक्षित करना राज्य की राजनीति में आत्मघाती हो सकता है।
साफ़ झलकती गुजरात लॉबी की घबराहट
यही कारण है कि गुजरात लॉबी की घबराहट साफ़ झलकती नज़र आ रही है, आमतौर पर नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व वाले गुट को “गुजरात लॉबी” कहा जाता है जो भाजपा में अत्यधिक केन्द्रीयकरण और ‘हाईकमान कल्चर’ के लिए जाना जाता है। इस लॉबी को इन तीनों नेताओं से दो बातें खटकती हैं पहली, स्वायत्त विचारधारा! ये नेता निर्णयों में ‘हाँ में हाँ’ मिलाने वाले नहीं हैं, जिससे हाईकमान को असहजता होती है। दूसरी संघ के ज्यादा करीब जब कोई नेता संघ का प्रिय होता है, तो उसे पूरी तरह से नियंत्रित करना मुश्किल होता है। गुजरात लॉबी चाहती है कि पार्टी में सभी निर्णय एक ही केंद्र से हों, जो इन नेताओं के स्वभाव से मेल नहीं खाता।
बहरहाल, संघ का सख़्त और संदेश है कि पार्टी का भविष्य सिर्फ चेहरे बदलने से तय नहीं होगा, बल्कि विचार और जमीनी संगठन की आत्मा को जीवित रखने वाले नेताओं से होगा। संजय जोशी, गडकरी और वसुंधरा राजे जैसे नेता उसी “आत्मा” का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसलिए संघ इन चेहरों को पुनः महत्व देना चाहता है, क्योंकि यह संगठनात्मक संतुलन और पार्टी की मूल पहचान बनाए रखने का प्रयास है। वहीं गुजरात लॉबी इस संभावित पुनर्जीवन से असहज है, क्योंकि इससे केंद्रीय नेतृत्व की पकड़ ढीली हो जायेगी और सत्ता का त्रिशूल मोदी-शाह के हाथ से स्वत: छिन जाएगा।
(लेखक वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार हैं। सम्प्रति भास्कर से सम्बद्ध।)
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