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पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत के फ़ैसले का रंग दिखने लगा है. पाकिस्तान में उसने वॉटर स्ट्राइक कर दी है. नदियों का पानी रोके जाने से पाकिस्तान हिल गया है. कई शहर में पानी का टोटा है. दैनिक भास्कर की खबर के मुताबिक जम्मू के रामबन स्थित बगलिहार बांध में चिनाब का पानी रोकने के बाद सोमवार को पाकिस्तान के सियालकोट में चिनाब नदी के पानी का लेवल घटकर 15 फीट रह गया है। रविवार से ये लेवल 7 फीट कम है। चिनाब के लगातार सिकुड़ने से 4 दिन बाद पंजाब के 24 अहम शहरों में 3 करोड़ से ज्यादा लोगों को पीने के पानी के लिए तरसना पड़ सकता है। पाकिस्तान के फैसलाबाद और हाफिजाबाद जैसे सघन आबादी वाले शहरों की 80% आबादी पेयजल के लिए चिनाब के सतही पानी पर निर्भर है। पाक के सिंधु जल प्राधिकरण ने आशंका जताई कि पानी की कमी से खरीफ की बुवाई में 21% की कमी आएगी। देर शाम पाक संसद ने भारत द्वारा पानी रोकने को युद्ध छेड़ने की कार्रवाई बताया। बता दें कि पहलगाम हमले के बाद भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया था। भास्कर से सम्बद्ध रहे वरिष्ठ पत्रकार त्रिभुवन का टटका राइट अप पढ़िए:
शानदार फैसला है कि सिंधु नदी का पानी अब पाकिस्तान नहीं जाएगा
भारत सरकार ने शानदार फैसला लिया है कि सिंधु नदी का पानी अब पाकिस्तान नहीं जाएगा। यह इतना पानी है कि 2720 क्यूसेक्स वाली गंगनहर सिंधु नदी के एक साल के जल से 75 साल छह महीने चल सकती है। गंगनहर परियोजना 1927 से चालू है। विभाजन से पहले इसमें 1.11 एमएएफ पानी आता था और हमें 2720 क्यूसेक पानी मिलता था। लेकिन सरकारों की अनदेखी और विधायकों-सांसदों की प्राथमिकता सूची में नहीं होने के कारण इसकी लाइनिंग अत्यधिक जीर्ण-शीर्ण हो गई। आधुनिकीकरण हो नहीं पाया और यह ऐसे टूटेफूटे लोटे जैसी हो गई कि जिसकी क्षमता तो 2720 क्यूसेक थी, लेकिन रह गई 2000 क्यूसेक से भी कम। यह काम कलेक्टरों, विधायकों और सांसदों का था, लेकिन उन्होंने कभी इस पर ध्यान ही नहीं दिया। ये सिर्फ पानी नहीं है…या नहर नहीं है। यह राजस्थान के गंगानगर जिले की लाइफलाइन है। ये हमारे हक़ का पानी है। यह हमारे खेतों को क्यों नहीं दिया जा रहा? और क्यों किसानों की पसीने से तरबतर देहों और खेती की एक प्रेम कहानी हर बार अधूरी रह जाती है? क्यों गंगनहर के पानी को लव जिहाद मानकर किसानों से छीन लिया जाता है?
भाखड़ा, व्यास और रावी का पानी हर साल पाकिस्तान को चला जाता है
मैं पहली से आठवीं कक्षा तक सुलेमान की हैड से हर रोज़ अपने घर 25 एमएल से स्कूल तक पुल पार करता था। मैं कभी सुलेमानकी हैड पर चक एक केके वाले स्कूल, कभी घमूड़वाली और कभी चार बीबी जाता था। तब भी यह मांग थी और आज भी है। जब इस नहर के किनारे घमूड़वाली तक पढ़ने गया था तब भी यही मांग थी। और जब रत्तेवाला साइड में बीबी नहर के किनारे से जाता था तब भी यही किसान इसी बात को लेकर आंदोलन किया करते थे। सुखाड़िया ने हमारे कितने किसानों का खून बहाया? किसी मुख्यमंत्री ने कभी नहीं सुनी। सिर्फ़ एक अनपढ़ किसान कहे जाने वाले गुरजंटसिंह मंत्री बने तो उन्होंने बहुत ही टेक्टफुली जिले को पानी दिलवाया। भाखड़ा, व्यास और रावी का इतना पानी हर साल पाकिस्तान को चला जाता है कि उससे गंगानगर के किसानों को पांच सो क्यूसेक पानी साल भर में अतिरिक्त दिया जा सकता है। नहर है तो 2720 क्यूसेक की, लेकिन इसमें पानी आधा भी नहीं चलाया जाता। जो आता है, उसमें पंजाब वाले जो सरबत दा भला का पाठ हर सुबहोशाम करते हैं, अपने भाइयों के लिए पानी को ऐसे देते हैं, जैसे इसमें कोलतार मिलाया गया हो। यह वही पानी है, जिसे हम सब स्कूल के दिनों में नहर के किनारों पर लगी दूब पर उलटे लेटकर सीधे पी लिया करते थे।
आज राजस्थान का किसान तड़प रहा है और खेत बेहाल बेनूर
इस नहर की कितनी शानदार कोठियों को तबाह किया गया है।Dainik नहर के किनारे एक विशाल और अप्रतिम वनांचल था। नभ को छूने वाले वृक्ष थे। आमों के बाग थे। कश्मीर जैसे गुलिस्तान थे। लेकिन अब उन जगहों को देखकर रोना आता है कि किसी इलाके के लोग सजग नहीं हों और प्रशासनिक अमला क्रूर हो तो उस इलाके का क्या होता है। यह नहर बताती है कि गंगासिंह कितने विज़नरी और प्रकृति प्रेमी थे और अंगरेज़ों की शासन व्यवस्था कितनी मुकम्मल। आज का किसान तड़प रहा है और खेत बेहाल बेनूर हैं। आख़िर इन किसानों से किस बात का बदला सरकारें ले रही हैं। ये लोग पिछले 50 साल से मांग कर रहे हैं कि उन्हें पूरा पानी दो। बातें की जाती हैं कि सिंधु को रोक देंगे, लेकिन पानी रुक नहीं रहा है रावी, व्यास और सतलुज का ही। जैसे आप कहो कि हम पूरी बारिश का पानी रोक लेंगे, लेकिन आप रोक नहीं पाएं एक अंजुरी का पानी! गंगानगर जिले में आए दिन पानी के आंदोलन होते हैं। लेकिन ये सब अनसुनी पुकारें हैं। गंगानगर का कुसूर यह है कि वह न तो जयपुर के पास दौसा की तरह है और न ही सीकर या टोंक की तरह कि आंदोलनकारी राजधानी जयपुर आ धमकें। अब वहां अमराराम या किरोड़ृीलाल मीणा जैसा कोई नेता भी नहीं है। गंगानगर में कोई हनुमान बेनीवाल भी नहीं है। गंगानगर में अब न कोई दर्शनकोडा है, न सुरेंद्रसिंह राठौड़। न ही श्योपतसिंह, योगेंद्रनाथ हांडा या प्रो केदार नाथ। हेतराम बेनीवाल बहुत बूढे हो चुके हैं, लेकिन यह शेर भी कभी कभी दहाड़ उठता है। भारत सरकार ने इतना पानी बचा लिया है कि उससे एक सदी की समस्या हल हो जाती है। इसलिए यह एक वाटरशेड मूवमेंट है। हमें अपने हिस्से का पानी चाहिए। गंगनहर का पानी। नहर 2700 क्यूसेक की है तो इतना ही पानी दो। ना कम, ना उधार में। यह पानी नहीं है। यह डिग्निटी है। यह सर्वाइवल है। यह अस्मिता है। यह इन्साफ है। यह समय की पुकार है।
नोट: यह लेखक त्रिभुवन के निजी विचार हैं। G.T. Road Live का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।