उर्दू पढ़ने-लिखने वाले एक मुल्ला से मिलिए साहिब! इनका नाम था, पंडित आनंद नारायण
सैयद शहरोज़ क़मर
उर्दू पढ़ने-लिखने वाले एक मुल्ला से मिलिए साहिब! इनका नाम था, पंडित आनंद नारायण। तख़ल्लुस मुल्ला। मशहूर हुए आनंद नारायण मुल्ला के नाम से।
इलाहाबाद हाई कोर्ट में वकालत करते थे। 1954 में यहीं जज हुए। 1961 तक फ़ाइज़ (कार्यरत) रहे।
एक फ़ैसले में उन्होंने ही पुलिस को ‘वर्दी वाला गुंडा’ कहा था। कालांतर में ये एक मुहावरा ही बन गया। वेद प्रकाश शर्मा इस टाइटल से नॉवेल लिख कर सबसे बिकाऊ पल्प राइटर बने। आनंद नारायण मुल्ला का शुमार उस्ताद शायरों में होता था। साहित्य अकादमी सम्मान से आप अपने एक काव्य संकलन (शेरी मजमुआ) के लिए अलंकृत भी हुए। बतौर आज़ाद उम्मीदवार लखनऊ सीट से जीत कर उच्च सदन ( चौथी लोकसभा में) भी पहुंचे। बाद (1972-78) में राज्य सभा के सदस्य भी नामित हुए। इन्हीं मुल्ला का एक शेर सुनिए ताकि आपके दिमाग़ का जाला थोड़ा तो साफ़ हो;
उर्दू और हिन्दी में फ़र्क़ सिर्फ़ है इतना
हम देखते हैं ख़्वाब, वो देखते हैं सपना!
लखनऊ में जन्मे कश्मीरी ब्राह्मण आनंद नारायण मुल्ला कहा करते थे, भाषाएं दो प्रकार की होती हैं; भाषण की भाषा और कल्पना की भाषा। उर्दू उनके चिंतन की भाषा थी। उनका एक और शेर भी पढ़ ही लें;
लब पे नग़मा और रुख़ पर तबस्सुम की नक़ाब
अपने दिल का दर्द अब मुल्ला को कहना आ गया!
योगी जी के अपेक्षित बयान के बाद मुल्ला भी याद आए। कठ मुल्ला (जो एक धर्म समाज में ही नहीं होते) भी याद आए। नामवर भी याद आए। मुनव्वर भी याद आए। इसी हफ़्ते रांची में हुई उर्दू कॉन्फ्रेंस भी ज़ेहन में है, जिसे अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू हिंद की झारखंड इकाई ने आयोजित किया था। उसमें आज़ाद हिंद फ़ौज में कर्नल प्रेम सहगल और कप्तान लक्ष्मी सहगल की विदुषी बिटिया वाम नेता पूर्व सांसद सुभाषिनी अली की तक़रीर ग़ौरतलब है। जीटी रोड लाइव यू ट्यूब चैनल पर मिल जाएगी। वहीं साहित्यकार और राज्य सभा सांसद डॉ. महुआ माजी ने भी सम्मेलन में मानीख़ेज़ (अर्थवान) बातें कहीं।